बेअदब   (मुकेश तिवारी "बेअदब")
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Joined 16 August 2018


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11 SEP 2022 AT 22:22

दिल मे छुपा कर रखा है, इस मर्ज़ का आराम सुन,
बस एक दफा मेरा नाम ले, और बोल दे तुझे इश्क़ है।

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11 SEP 2022 AT 14:33

मेरा मुझ में नहीं है कुछ भी, सबकुछ उनसे आया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

माँ से आया नम्र निवेदन, अपनो के लिए झुकना आया,
मैं से लड़कर हम हो जाना और सबसे फिर जुड़ना आया,
अपने सुख दुख से आगे, परिवार को रखना आया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

आँखों मे आकाश लिए, सपनों पर उड़ जाना आया,
गर्व से चौड़ी छाती कर, दुनिया से लड़ जाना आया,
संघर्षों के परे सफलता है, ये पिता ने मुझे दिखाया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

प्यार जताना माँ से आया, साथ मे भी चलना आया,
सुख में आया संयम रखना, दुःखों में भी हँसना आया,
छोटी छोटी खुशियों में भी, त्यौहार मनाना आया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

शक्ति-बुद्धि है पिता से आई, अदृश्य प्रेम करना आया,
अपना गाढ़ा प्यार समेटे, सख़्त बने रहना आया,
गुस्सा कर के प्यार दिखाना, मन पढ़ना अपनो का आया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

आया पूर्ण समर्पण माँ से, पिता से त्याग करना आया,
अपनो के लिए नीर में, आग आग करना आया,
कुछ सीख है मेरी माँ से आई, कुछ पाठ पिता ने पढ़ाया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

मेरा मुझ में नहीं है कुछ भी, सबकुछ उनसे आया है,
नैन हैं मेरी माँ के जैसे, नक्श पिता सा पाया है।

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29 JUN 2021 AT 10:31

महबूब से मोहब्बत का इज़हार करो तुम,
जाओ उसे जाँ से भी ज्यादा प्यार करो तुम,
ज़िन्दगी का क्या है आज है कल हो ना हो,
जाओ फिर उससे मोहब्बत बेशुमार करो तुम।

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20 MAY 2021 AT 23:05

तमाम शोहरत इकट्ठी की,
हासिल हर एक मुक़ाम किया,
खुद को ख़ुश रखने की ख़ातिर,
मैंने हर मुमकिन काम किया,

ख़ुशी की ख़ातिर ख़ुशी को खोया,
ख़ुशी मिली ना ग़म का हल,
अब सोच रहा हूँ कहा मिलेंगे,
खोये हुए सुकून के पल।

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20 MAY 2021 AT 21:54

डर इस बात का नही के मौत खड़ी है सर पे,
डर इस बात का है कि मेरे बाद क्या होगा।

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14 MAY 2021 AT 15:51

है काफ़िर क्या और मोमिन क्या,
जब हर ज़र्रे में है मौला।

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14 APR 2021 AT 0:33

फ़ासले बढ़ते गए पर इश्क़ ना घटने दिया,
वो हमारे चाँद हम उनके चकोर हो गए।

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14 APR 2021 AT 0:11

इंतज़ार हो उसका या फिर, दीदार हो उसका,
मेरे हर एक लम्हे में बस, अब वो ही वो रहे।

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6 APR 2021 AT 0:02

हाँ उसे देख कर मिलता है मेरी नज़रों को सुकून,
पर तुम रख लेना मेरी आंखे, मेरे जाने के बाद,
बस इस बार सवाल मेरी नज़रों के सुकून का नही,
बल्कि उसे मेरी नज़रों की आदत होने का है।

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30 MAR 2021 AT 23:33

मैं हर लफ्ज़ में अपनी ही ख़बर लिखता हूँ,
सुबह - ओ - शाम खाई हर ठोकर लिखता हूँ,
के मैं बेचैन हूँ खुद पर सबको हँसता देख 'बेअदब',
फिर भी तुझे उस्ताद और खुद को जोकर लिखता हूँ।

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