ये ज़िन्दगी मेरी जैसे तमाशा ही बन गई,
ना जाने ये कौनसी गुनाहों की सजा जो में इस जनम मै पाई।
अब तो सपने में भी डर सा लगने लगा है,
क्यूं कि अब मुझमें और कुछ खोने की हिम्मत ही नहीं।
खुद से भी अब नफरत सी होने लगी है,
क्या करे अब तो हम खुद में ही खुद को ढूंढ ने लगे है।
लगता है ऐसे जैसे खो गेई हूं मैं कहां,
हर तरफ बस अंधेरा है जहां ।
आता है मन में लाखों सवाल,
फिर ख्याल आता है बिना कुछ खोने से यहां मिलिता है कुछ कहां............!!!!!!
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