You met me at a time when
I was submerged in the middle
of self discovering pacific.
You are a place I was waiting for
A place I didn't even know I needed
Even though I am not fully unpacked
It feels like a place I want to stay.
I feel the need to step lightly
Who knows what's underneath
this soft earth of yours and
I want permission to start sowing.
But only if you let me in.
Only if the person who,
If I share gravity with
allows me to do so.
I don't mind if it's not summer with you
or even spring or the rains..
I like the brown crunch under feet
In chilly winter air and
The warmth of yours distant light.-
प्रभात, संध्या पुरवाई या रात्रि अंधकार
पैर और पहर देहली पर अटक जाएंगे
हंसी और खड़ग लिए, कौए-गिद्ध
हर खिड़की या दुआर घुस आएंगे
तुम्हारा क्रोध अधिकार प्रतीक्षा कुचल
पंच तुम्हें गरल आदेश का थमा जायेंगे
धरा में धंसती, बाही में कसती
तुम, बेड़ियों की मां बन जाओगी
वो वन विहारते, भिक्षित, उघारते
विरक्त भी राहुल के पिता कहलाएंगे
तुम चिर वियोग का दान देती रानी
स्नेह से वंचित, प्यासी रह जाओगी
और सामने खड़े भिक्षु सिद्धार्थ,
तुमसे भिक्षा ले मेघंकर हो जाएंगे
तुम प्रतीक्षित ही रहोगी और बुद्ध छोड़ जाएंगे
जंगल-पहाड़, भार उठाने गिरमिट ही आयेंगे।-
मेरा दोस्त, साथी या हमसफ़र होना वो ख़याल है
जो हक़ीक़त होने को बस तेरी हां का मौक़ूफ़ है।-
ना चंदन की लकड़ी ना दो गज़ ज़मीन ना ताबूत
तिमार के प्यासे आदम को बस मदद मुकद्दस है-
उन्हें लिखने से फ़ुर्सत नहीं, जाने कब उनकी नज़्म पूरी होगी
हम थक गए उनकी राह देख, जाने कब हसरत-ए-दीद पूरी होगी।-
तपते सूर्य की चुभन में तुम मेरा हमसाया बनते गए
मेरी आंखों में तकते तुम दोस्त से कुछ ज़्यादा बनते गए
गर्म चाय सी सरल बातें जो भाप में उलझती, उड़ती गईं
कड़ी दर कड़ी उन सालों की जैसे खुद ही जुड़ती गई
इस तरफ तो तुम्हारे स्नेह की संध्या ढलती गई
और उधर मैं बस दोस्त से प्रेमिका में बदलती गई।-
बयां कर देता है सब सिवा माज़रा-ए-क़ल्ब के
वो जो वहां ख़ामोश सा ख़ुश-गुफ़्तार बैठा है-
Don't expect to be fed by the one
Who holds bread and watch you starve.-
क्या होगा मेरे तंग हाथ दिल का
तुम्हारी इन बातों के वज़ीफे से..
मैं वो पढ़ी लिखी बेरोज़गार हूँ..
जो तुम्हारे साथ की नौकरी चाहती है|-
स्त्रियों को उदासी
उपहार में दी जाती है।
जब वे..
कामना करती हैं प्रेम की
वहाँ उन्हें मिलती हैं
उदासी व प्रतीक्षा की
श्रृंगार लालिमा
जो वे..
सजाती हैं
अपनी गालों के
बिल्कुल नीचे बैठे
उन होंटो पर
जहाँ वे..
छेड़ना चाहती हैं
प्रेम के गीत।-