Balwant Shah   (Balwant shah 'तन्हा')
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Joined 7 October 2017


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6 AUG AT 16:07

PER
PAP

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5 AUG AT 9:25

सफर में हमसफर का न होना
रहकर शहर में, शहर का न होना
क्या होना कोई सामान गृहस्थी का
जब सुकून का मेरे घर में न होना

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29 JUL AT 9:53

कुछ तो जादू है
मैं हूं काबू पर
दिल बेकाबू है

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22 JUL AT 11:05

ढंग जिंदगी के,
चलना सीखो
संग जिंदगी के

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19 JUL AT 13:13

जिंदगी के आपा धापी में
परिवार नदारद है
सोम मंगल बुध मुफलिसी
गुरुवार नदारद है
शुक्र है जिंदा है हम
शुक्रवार नदारद है
सर पर शनि का टाईटल है
शनिवार नदारद है
हम जैसों के कैलेंडर से
रविवार नदारद है

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19 JUL AT 10:59

कितना भी टूट जाए ये काँच सा दिल
फिर भी सहेज कर रखना ही पड़ता है

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18 JUL AT 15:09

ये जानते हुए
की कर रहा है
कोई इंतेज़ार तुम्हारा

तुम आने में
जानबूझ कर
देर करते हो ।

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18 JUL AT 10:40

आसमान में न था
आस्तीन में रहने वाला
गिरेबान में न था

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10 JUL AT 21:59

ना हम जुदा होते, ना तन्हाई होती
वो लग कर गले भला जाते क्यों ?
अपनी धड़कन उनको गर सुनाई होती

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10 JUL AT 9:31

अकेला था
तो परेशान था
उलझनों में उलझा
मन खामोश था,वीरान था

अकेला रहा तब भी
जब निकला सुकून ढूंढने
शहर शहर भटका तन्हा
खैर ! मैं तो मेहमान था

ख्वाब देखे कई
हुए मिट्टी सभी
याद आया यही
मैं तो महज इंसान था

अब किसी से शिकायत
करे भी तो क्या
जुबां होते हुए भी
शख्स बेजुबान था

यही एक सच
छुपाना था 'तन्हा'
तू अब भी है परेशान
तू तब भी परेशान था

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