PER
PAP-
#From_Siwan_Bihar
वो शाम कुछ अजीब थ... read more
सफर में हमसफर का न होना
रहकर शहर में, शहर का न होना
क्या होना कोई सामान गृहस्थी का
जब सुकून का मेरे घर में न होना-
जिंदगी के आपा धापी में
परिवार नदारद है
सोम मंगल बुध मुफलिसी
गुरुवार नदारद है
शुक्र है जिंदा है हम
शुक्रवार नदारद है
सर पर शनि का टाईटल है
शनिवार नदारद है
हम जैसों के कैलेंडर से
रविवार नदारद है-
ये जानते हुए
की कर रहा है
कोई इंतेज़ार तुम्हारा
तुम आने में
जानबूझ कर
देर करते हो ।-
ना हम जुदा होते, ना तन्हाई होती
वो लग कर गले भला जाते क्यों ?
अपनी धड़कन उनको गर सुनाई होती-
अकेला था
तो परेशान था
उलझनों में उलझा
मन खामोश था,वीरान था
अकेला रहा तब भी
जब निकला सुकून ढूंढने
शहर शहर भटका तन्हा
खैर ! मैं तो मेहमान था
ख्वाब देखे कई
हुए मिट्टी सभी
याद आया यही
मैं तो महज इंसान था
अब किसी से शिकायत
करे भी तो क्या
जुबां होते हुए भी
शख्स बेजुबान था
यही एक सच
छुपाना था 'तन्हा'
तू अब भी है परेशान
तू तब भी परेशान था-