चार दिन की जिंदगानी, कट रहे हैं दिन_
दो बीते तेरे साथ में, दो कटे तेरे बिन__!-
वो कहती हैं, एक बार फिर साथ आते हैं...
मैंने कहा- कहा मिलते हैं रास्ते, जो पीछे छूट जाते हैं
कहने लगी- कहानी को दोबारा लिख जायेगा, अधूरे ख़्वाबों को पूरा किया जायेगा..!!
मैंने कहा- मैं तेरी कहानी का हिस्सा नहीं बनना चाहता, तेरे ख्वाबों से अब नहीं जुड़ना चाहता..!-
सिर्फ़ दूरी का मलाल हैं...
इश्क़ का जो, रंग मिले बस वंही गुलाल हैं..!!-
नींद से शिकवा कैसा?... मेरे दोस्त..!
आखिर किसी की याद में जागना भी तो इश्क़ हैं..!!
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असली मोहब्बत तो सावलें रंग से ही हैं मुझे..
गोरे तो आज़ादी से पहले भी बेवफ़ा थे..!!-
उसके इश्क़ के जुर्म का कोई सबूत नहीं मेरे पास....
हाँ, उसकी कातिल निगाहों में मेरी तस्वीर जरूर हैं..!-
मैंने परखा हैं, अपनी बदकिस्मती को....
मैं जिसे अपना कह दूँ, फिर वो मेरा नहीं रहता
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सब्र नहीं अब सिर्फ़ मुलाकात चाहता हूँ...
अब तेरा दीदार नहीं बस साथ चाहता हूँ..!
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मन में रहमत, दिल में दरियादिली होना जरूरी हैं...
सजदों में पड़े रहने से जन्नत नसीब नहीं होती.. दोस्त..!-