मै अनपढ़ ही रहना चाहता था,
मुझे ज्ञात था,
जो पड़ लिख लेता है न,
उसका घर छूट जाता है।।
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Balrampatidar608
मै कभी इतना निराश हुआ ही नहीं,
की मुझे किसी को मनाना पड़े।
मै सदैव रहा सौम्य उन चंचल नदियों सा,
जो निस्वार्थ बहती रही।
मै हर किसी के दुःख मै खड़ा रहा,
उन विशाल पहाड़ों सा,
जो अत्यधिक वर्षा मै भी बहे नहीं।
पर मुझे जरूरत पड़ने पर सब कठोर हो गए,
किसी के पास दया और ममता बची ही नहीं।।
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यदि कोई तुम्हारे प्रति
पूर्ण रूप से समर्पित हो,
तुम प्रयत्न करना उसको,
कभी इसका पछतावा न हो।।-
भीषण ठंड मै, पतंगों के पीछे,
फटे हुए कपड़े,
और नंगे पैर,
भागते हुए बच्चों को देखकर,
मैने जाना,
दुखों को दुःख ना मानना
दुखों की सबसे बड़ी हार है।।
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पूरे साल की उम्मीदें लाद,
दी जाती है जनवरी पर।
सारे हादसों का इल्ज़ाम,
अकेला दिसम्बर ढोता है।।-
त्यौहार शायद इसलिए भी आते है,
की घर से दूर बैठा कोई शख्स।
भूल न जाए घर के आंगन को।।-
लोग अगले ही दिन भूल जाते है,
की कोई त्यौहार था।
लोग कितने प्रतिबद्ध है,
अपने अपने दुखों मै लौटने के लिए।।-
दुनिया के सारे डाकखाने प्रेम से चलते है,
और कचहरियां नफरत से,
ये कोई हैरत की बात नहीं की,
डाकखाने कम होते गए,
और कचहरियां बढ़ती चली गई,
इस टेक्नोलॉजी के जमाने मैं,
हम दोनो एक चिट्ठी तो एक दूसरे को,
लिख ही सकते है।
या फिर तुम मुझे कभी - कभी,
कोई किताब भिजवाना।।-
संघर्ष की कहानी भी केवल उन्हीं,
की सुनी जाती है,
जिनके हिस्से मैं सफलता आयी हो।।-