सबसे पहले मेरे घर काअंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-साही है संसार। फिर मेरा घर बना घोंसला सूखे तिनकों से तैयार तब मैं यही समझती थी बस इतना-सा ही है संसार।
फिर मैं निकल गई शाखों पर हरी-भरी थीं तब मैं यही समझती थी बस इतना-सा ही है संसार।
आखिर जब मैं आसमान में उड़ी दूर तक पंख पसार तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है यह संसार
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आहटें मिलीं तेरी मुझको
कल रात कई बार नीद से जगता ही रहा
चाहतों के झोंको का लेख बनकर तू
ह्र्दयपटल पर उभरता ही रहा-
बीवी संग तकरार में, हँसते रहो हजूर !
सुबह, दोपहर, शाम हो, बने रहो मजदूर-
कमरे से रख्खे बाहर, कितने मौसम एक साथ।
यादों वाली चाय भी है, बस नही है तो हाथों में तेरा हाथ...!-
कभी कभी मुझसे होता नहीं हु बहू जो मन मे रह जाते उन शब्दों का अनुवाद...
बस ख्यालों की धारा बहती रहती है, ओर मन सुनता रहता है वो नाद...!-
याद रखिए कि ब्रहमांड की ऊर्जा हमारी सोच से कहीं ज्यादा बड़ी है. ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर ही सोच रखा होगा. जीवन में सकारात्मकता बनाए रखें. यही एक मजबूत इंसान की निशानी है.
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जैसे एक कुम्हार घड़ा बनाते समय थपथपा कर घड़े के सारे विकार मिटा देता हैं इसी प्रकार ईश्वर भी हमे सुन्दर ओर मजबूत इंसान बनाने के लिए समय समय पर हमारी परीक्षा लेकर हमारे सारे विकार मिटा देता हैं।
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कोरोना महामारी की इस लडाई में होंसला और घोंसला न छोड़िए,सब ठीक हो जाएगा🙏
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घड़ी की सुइयां चाहें हो किसी भी जगह पर.....
बच्चों की एक फरमाईश
थकी पसीने से नहाई
कभी उफ नही करती वो......-