Bagdi Kanya   (Bagdi Kanya बागड़ी कन्या)
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Joined 5 March 2021


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Joined 5 March 2021
2 FEB 2023 AT 0:35

जितनी बसर हुई वो बहुत थी
अब जिंदगी से रिहाई चाहता हूं

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2 FEB 2023 AT 0:05

अब एक भी शख्स नया नहीं चाहिए जिंदगी में,जो बचे है वो इतमिनान से नकाब हटाएं और चलते बने

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31 JAN 2023 AT 9:54

तुम्हारी और बढ़ रहे कदमों को
कभी कभी रोक लेना चाहता हूं..
मिलने से पहले तुम्हे अलविदा कह देना चाहता हूं..
जो मजा इंतजार में है
वो सुकूं तुमसे मिलकर ना मिला..
अपने परछावें को तेरे सरनावे से दूर चाहता हूं..
तुमसे मुहब्बत तो बहुत है मगर मैं होना तुम्हारी जिल्लत से मशहूर चाहता हूं..
ढके पर्दों के पीछे ख्वाब तो ठीक हैं
खुली आंखों के राज मैं दुनिया से दूर चाहता हूं..

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31 JAN 2023 AT 9:49

कुरेद हाथ रहा हूं
जख्म दिल के उभर रहे हैं..
मरहम सईद पर लगा रहा हूं
कस्ता सीने में चल रहें है..
कैसा मंजर चल रहा
रास्ति का इश्क कल्ब में है
फुरकान में जिस्म बेचने पड़ रहे हैं

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29 JAN 2023 AT 16:49

युंह तो बीच सफर से कुछ लौट गए,
कुछ मुड़ आए थे रकीब..
टूटी डोर को गांठ बांध जोड़ने की तरकीब
तो सबको आती है.. नही आता तो बस उस जोड़ को नजरंदाज करना
डोरी को बांध देने से दो छोर तो फिर से मिल जाते हैं पर हमेशा दो छोर के बीच रुकावट बन खटकता रहेगा वो जोड़..

जो एक बार टूट जाए उसे बिखरे रहने देने में ही भलाई है.. दरारों की भरपाई में जिंदगी बंजर हो जाती है

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29 JAN 2023 AT 0:46

रफ्ता रफ्ता बिखर जाने का मन चाहता है
मेरा जिंदगी खत्म करने को मन चाहता है..
रफ्तार सफर की आहिस्ता करने को मन चाहता है
मेरा बीच राहों में गुजर जाने का मन चाहता है..

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25 JAN 2023 AT 0:17

अंदर ही अंदर खाए जा रहे हैं पिये हुए गम मुझे
मैं दस्तरबंद हूं,नजरबंद होना चाहता हूं..
जो पड़ती हैं किसी की निगाह मुझपर
हाथ खून से सने दिखते है मेरे..
कत्ल खुद ही का हुआ है अपने हाथों।
आईना देखूं तो खुदको कटघरे में पाता हूं रफ़ी
खुद पर मुकद्दमा चला सजा सुनाता हूं मुझे
पैरवी करू तो तर्क क्या दूं
तर्क ए ताल्लुक के तानों में फस जाता हूं खुद ही
जख्म दिखते नही मगर मरहम लगता हूं जब कहीं
खुद की हाफि में खंजर फिर उठता हूं तभी

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16 JAN 2023 AT 0:58

मैं आज भी इन्हे पढ़ी लिखी महिलाओं की मूर्खता कहूंगी जो इतने गहन मुद्दों को छोड़ कर उन्हे प्राप्त मंच पर अपना हित साधने के लिए बचकाने मुद्दे उठा रही हैं लड़ाइयां सब लड़ते हैं जो लड़ाइयां बिना शोर के लड़ी जा रही हैं आवाज उनकी बनिए वरना ये समाज सही कहता है
"औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है"
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9 JAN 2023 AT 12:30

कल्पनाएं बस वास्तविकता पर ढका एक पर्दा है

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7 JAN 2023 AT 19:36

मेरे मुंह में रूमाल आंखों में आसूं और किसी जख्मी परिंदे की तरह घायल शरीर वो टॉफी बांटते हुए सांता क्लॉस सा दिखने वाला इंसान अब किसी दानव से कम नही लग रहा था।

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