कभी ख़ौफ़ ख़फ़ा का
तो कभी ख़ौफ़ से खफ़ा
ख़फ़ा जो माँ तो
ख़ौफ़ है घर सा
सुकून दिल का
और दिल इश्क का
कभी आशिक़ जिंदा है इश्क़ से
तो कभी इश्क़ की जिंदगी आशिक़ भी
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Simple is waste
Complicated is chased
ये तो समझौतों का मेला है
कोई कहीं है साथ किसी के
कोई कही अकेल है
कोई सपनों में खोया है
कोई सपनों की खातिर खोया है
ये बात भी तो कहां पता है सबको
इन अंधेरी रातों में कौन कितना रोया है
कुछ मंजिलों से आके थक कर चूर हुए
कुछ की मेहनत जारी है
हर अगली सुबह से उम्मीद जोड़ती ये रात
की शायद कल हमारे दौर की बारी है-
कुछ दुख भी
और दर्द भी
हाँ है दवा
और मर्ज़ भी
कुछ एहसान भी हैं
और हाँ!
हैं कुछ कर्ज़ भी
हैं कुछ जिम्मेदारियां
ओर कुछ फ़र्ज़ भी
लो आशिक़ भी हैं यहाँ
ओर इश्क
कुछ पन्नों में दर्ज भी-
ना जाने क्यों
मगर एक अजीब सा सुकून था
उन सुनसान गलियों में
जो शायद खो सा गया है
सपने पूरे करने वाले इन शहरों में
जिंदगी मेरी वहां रंगीन हुई
जो इन बड़े शहरों में संगीन थी
हाँ!! याद आया
एक रोज मैं बीमार पड़ा था
उस गांव में मैं अकेला खड़ा था
न जाने किधर से एक दादी आई
प्यार से थाली सजाई
बेटे से दवा भी मंगवाई
बस यहीं मेरी आँखें भी थीं भर आईं
उस रोज़!!
मैं सोच में पड़ा
क्या मेरा शहर वाकई है बड़ा!!
जहां न कोई खोज खबर न सुकून है
क्या ये वही मेरे सपनो का शहर है
असल में है प्यारा
या वो बचपन का सिर्फ एक जुनून है!!-
तुम प्रेम करना
सिया राम सा
राधे श्याम सा
जो सब्र देता हो
वरना
मोहोब्बत तो आज कल
क़ब्रों पर बने
ताज से तौल दिया जाता है-
ये बारिश की बूंदें
नजाने कितने फलसफे सुनाती हैं
माज़ी के ज़ख़्म
खुरेद कर हर दफा
मज़ीद हरा कर जातीं हैं-
जब जब ये बदल बरसेंगे
जब भी ये आंखें तरसेंगी
कोई लम्हा जो बेगाना होगा
तुम्हे आना होगा
जब भी हो तन्हाई
या महफिलों में रुसवाई होगी
जब हाथों में लकीरों होंगी
या फ़िर कलीरे होंगी
जब मैं ना बुलाऊंगी
किसी तरह ना सताऊंगी
तुम्हे आना होगा
जब हाज़िर हमारा जनाजा होगा
शायद तब तुम्हें आना ही होगा-
सब कुछ गवाकर लाए थे
एक मुद्दत थी दिल में भरी
तो खुद को भी लुटा के आए थे
अरे इश्क कमा के लाए थे
एक वहम था दिल में भरा
की अपना बनाकर लाए थे
हम तो इश्क कमा के लाए थे
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