ऐ ज़िंदगी ठहर जा जरा
मैं तुझमे खुदको जीना चाहती हूं
Dr.Bably Arvind-
तुमसे सिर्फ मोहब्बत होती
तो बात अलग थी
तुम्हारी फ़िकर है
इसलिए दिन रात
सिर्फ तुम्हें सोचते हैं
Dr.Bably Arvind-
वो शब्द कौन सा होगा
जो मेरे प्यार मेरे ज़ज्बात को
लफ्जों में बयां कर पाये
मैं कितना प्यार करती हूँ तुमसे
ये तुमको बता पाये
यही सोच में डूबी रहती हूं
वो शब्द कहा से लाउ
जो मेरे प्यार को
तेरे धड़कन तक पहुंचाये
Dr.Bably-
मैंने कुछ पुरानी तस्वीरों में
खुद को मुस्कराते हुए पाया
सच वो भी क्या दिन थे
जब हमे भी मुस्कुराना आता था
अब तो नाटक के किरदार में
ऐसे रम गए कि
खुद को ही भुला दिया हमने
Dr.Bably Arvind-
उसमे भूलने का हुनर है
मैं भूल नहीं पाती हूँ
वो बिंदास ज़िंदगी जीता है
मैं दर्द में आहे भरती हूँ
Dr.Bably Arvind-
काश समन्दर की लहरों से
मैं पूछ पाती
क्यों नहीं रख लेते
उस शख्स को अपने पास
जिसे तुमने खुद बनाया है लाश
Dr.Bably Arvind-
गयी थी पति के साथ घूमने हसते हुए
पति की लाश को लेकर कैसे आयेगी रोते हुए
इस नरसंहार से उसने क्या पाया
ये तो पता नहीं
पर वो सारी औरतों ने अपनी जिंदगी
अपनी दुनिया खो दी एक ही पल में
Dr.Bably Arvind-