घर से बाहर निकली हर लड़की ,हर औरत.....जो आधिकारिक तौर पर किसी पुरुष के साय में नहीं है......बदचलन है। किसी से थोड़ा हॅंस बोल लिया...तो खुली दुकान हो गई। किसी विषय पर अपनी राय रखी तो अक्खड़। मन का पहना...तो छींटाकशी का खुला बाजार। नजरें मिलाकर बात की...तो बेशर्म।
हमारी नज़रों में बस वही स्त्रियां सुशील रहीं...जो अधिकृत हो गई किसी के लिए....जैसे गाय बंध जाती है किसी खूंटे से।
हालांकि पुरुषों के लिए.......ये मापदंड अलग ही रहे....उनके रंगीन मिजाज को लोगों ने पूरे दिल से हमेशा अपनाया है। पुरुष बाग का भंवरा हो गया......पर बदचलन........कभी नहीं।
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