इबादत करे के दिखावा करे है,
वो बस काम पे मौला मौला करे है
ख़ुदा ये तेरे मानने वाले तुझसे,
अक़ीदा करे है के सौदा करे है-
! शायर होने कि कोशिश में
अपनी आँखों से ये
तमाशा देखना है,
खुद को फुरकत के बाद
ज़िन्दा देखना है
-
नहीं होती हमसे ज़माने की बातें,
फलाने से करनी फलाने की बातें
हमें सब पता है के क्यूँ कर रहे हो,
हथेली झटक कर निभाने की बातें
चलो ठीक है प्यार पूजा नहीं है,
मगर सुन तो लो तुम दिवाने की बातें
जहाँ में कहीं तो ख़ुदा होता होगा,
फ़क़त है ये जी को मनाने की बातें
नया यार दो दिन ही अच्छा लगे है,
करूँ फिर मैं ख़ुद से पुराने की बातें
ग़ज़ल नज़्म किस्से कहानी ये साहिल,
है बस ख़ुद को ख़ुद से छिपाने की बातें-
इक आवाज़ गले से बाहर
नही आती इक चीख
आँखों में रहती है,
मुझसे कोई बात करे भी क्यूँ
इक नाउम्मीदी मेरी
बातों में रहती है-
मेरे अंदर से एक दिन सारी आवाज़ें निकलकर,
गिर जाएंगी तेरी ख़ामोशी की खायी में,
और फिर उसमें से गूँजेगा,
"ऊँ"
-
मेरे इस अंजाम पर
कोई शक नहीं है,
मैं एक अहद था
और अहद टूटता है,-
मुझमे तड़प है बेचैनी है,
नासमझी है,
मैं तेरे ज़हन के बराबर
का आदमी नहीं,
-
ख़ामोशी की एक नदी है तेरी आँखे,
छिपे दर्द है जो कहती है तेरी आँखे,
तू बेख़बर क्या जाने हमारी हालत,
जब भी झुक कर उठी है तेरी आँखे,
ख्वाबो के शिकारों में घूमता हूँ जहाँ,
गहरी झील सी लगती है तेरी आँखे,
फलसफे दुनिया के पढ़ा जाती है ये,
मुझे लगती फलसफी है तेरी आँखें,
बात हुई थी खुदा से बता रहे थे वो,
चाँदनी से मिलकर बनी है तेरी आँखें,
मुझसे बेहतर कौन जानेगा इनको,
सबने देखी मैंने लिखी है तेरी आँखे,
-
रंज-ओ-गम तेरे होंगे तो वो भी गुलों की तरह,
हमको जो मिलेंगे तो ज़िन्दगी महक जायेगी,-
किसी साहिल पे रेत महल बना रही होगी,
किसी पागल की फिर कसमें खा रही होगी,
मुझ से गम में लिपटकर रोती थी जो कभी,
जाने अब किसका आँचल भिगा रही होगी,
देखकर चाँद को मेरा हाथ पकड़ लेती थी,
अब रातों में चाँद से नज़रें चुरा रही होगी,
उसे मालूम है उसे ही लिखता हूँ ग़ज़ल में
मेरे लिखे मिसरों से दामन छुड़ा रही होगी,
मुझको मालूम है उसका ये हुनर ऐ दोस्त,
मुझ से किये वादे उससे निभा रही होगी-