मुझे एक बात समझ में बिलकुल नहीं आती ,
तेरे सिवा इस दिल को कोई और क्यूँ नहीं भाती ,
चला जाऊँ मैं किसी और राह पे मंज़िल ढूँढने के लिये भी अगर ,
ये उलझन भरी राहों की क़तार तुझ तक ही मुझे क्यूँ पहुँचाती ,
लिया फ़ैसला मैंने कई बार तेरी आँखों से ओझल हो जाने का ,
मेरे आँसूओ की नादिया तेरे ही प्यार के समुंदर तक क्यूँ ले जाती ,
जो हुआ उसे भूल जाऊ ये सोचा मैंने हज़ारो दफ़ा रातें गुज़र के , अगली सुबह की किरनें तेरे ही दरवाज़े से क्यूँ टकराती ,
इतना सब कुछ हो रहा है ज़िंदगी में मेरे होने से तेरे ,
अब भी छोड़ कर मुझे तू आख़िर क्यूँ जाना चाहती ??
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