अर्थ की चादर ओढ़े!
पूंजीवाद का गुलाम!
सच है ही बेईमान?-
Azad (आज़ाद)
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मैं हरदम कागज़ कलम का सिपाही,
हक़ीक़त में कल्पना लिखती मेरी स्याही!
हक़ीक़त में कल्पना लिखती मेरी स्याही!
Joined 15 September 2018
23 JUL 2024 AT 10:44
प्रकृति प्रदत्त विधि शाश्वत है,
नियत समय पर प्रतिशोध भी लेती है!
-आज़ाद
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20 FEB 2024 AT 12:19
ये नदियां, ये दरख़्त,ये गांव,
उजाड़ के शहर बसा देना!
कुछ पाना भी तो क्या पाना?
की सब कुछ खो देना!
-आज़ाद
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14 FEB 2024 AT 12:29
जब कोई व्यक्ति भूतल से उठकर अथाह धन अर्जित करता है तो अधिकांश धन का उपयोग किया जाता है अपने पुरखों के प्रभावी जीवन मूल्यों को नष्ट करने में!
-आज़ाद
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25 JAN 2024 AT 12:27
इंद्रप्रस्थ के मानस,
मौन कुटुंब,
चार अनुज एक उत्तरदायी,
युधिष्ठिर होना,
है कितना पीड़ादाई !
जग वन्दित का वनवासी होना,
और अवध की अकुलाई,
श्रीराम का राम होना,
है कितना पीड़ादाई!
हरि से मोह अटूट,
हिरण्यकश्यप सो जनक पाई,
भक्त का प्रह्लाद होना,
है कितना पीड़ादाई!
-आजाद
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