"अनकही बातें"
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हालाँकि तुमने कभी शिकायत नहीं की
मेरे कहने पर भी यही कहा की
जाने दो न जो हो गया सो हो गया
परन्तु तुम्हारी आँखे
मैं जब भी कोशिश करती हु इनमें झाकने की
ये किसी अँधेरी खाई में खींच ले जाती है मुझे
जहाँ कोई मुझसे चीख चीख कर पूछता है की
अब तो तुम प्रसन्न हो मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकराकर
और उस शोर में मैं अपनी आँखे मींच लेती हूँ
अपने दोनों कानो को अपनी हथेलियों से बंद कर लेती
सभी शब्द गले में ही सुख जाते है
चाह कर भी नहीं बता पाती की नहीं ये पूरा सच नहीं है
मेरा दिल भी छलनी हो चूका है ऐसा लगता है मानो किसी ने निचोड़ दिया हो
दम घुटता है मेरा बमुश्किल से आती हर सांस आखरी लगती है
मैंने भी सहा है
तुम जितना नहीं तो तुमसे कम भी नहीं
तुमसे कभी कह भी दू ये सब और तुम समझो भी शायद
लेकिन तुम्हारी आँखे ये साफ़ साफ़ कहती है की
स्वांग है ये, स्वांग है ये, स्वांग है ये
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