वो कहते हैं अक्सर
क्या खोजती हो अकेले चलते हुए राहों में....
मैं कहती हूं,
कि गर्म दोपहरी की सर्द शामों सी राहत
या कपकपाते सर्द दिनों में हो जैसे धूप की चाहत, जो करता है मेरे चंचल मन में सुकून की आहट
और
कर देता है ओझल, परेशानियां दिखाकर अपनी इनायत-
देवभूमि उत्तराखंड निवासी🥰
जहां हर मुलाकात की शुरुआत चाय की घूंट से,
तो वही हर बात का अंत बल लगाकर किया जाता है।
बात चाहे कुछ भी हो पर बीच में निर्भगी, तेरू कपाल और मौर जा तो जरूर लगाया जाता है
जी हां यह वही उत्तराखंड है जहां चोट लगने पर दवाई से पहले हल्दी कूंजा लगाया जाता है ।।
यहां के जागर की धुन के आगे तो अच्छे-अच्छे डीजे फेल हो जाते हैं
और जिसमें पहन ली पहाड़ी टोपी फिर वो तो पक्की पहाड़ी कहलाते हैं ।
यहां के हर युवा का सपना आर्मी से शुरू और देश सेवा पर खत्म होता है
जी हां ये वही उत्तराखंड है जहां हर प्रेम से बढ़कर देश प्रेम होता है।।-
जहां की वीरांगनाओं की गाथाओं से सहमा समूचा संसार है
जहां की तीनों सेनाओं से घबराया हर बार दुश्मन सीमा पार है
जहां की सौंदर्यता की पूरे विश्व में मिसाल है
जी हां मैं बात कर रही हूं उस देश की जिस देश में ऊंचाइयों को छूता तिरंगा, पाप को मिटाती गंगा,मानवता कर्तव्य और भारतीयता धर्म है
भारतवासी कहलाना यहां के नागरिकों के लिए ना किसी उपलब्धि से कम है
जहां हर धर्म से पहले पूजा भारत माता को जाता है
गर्व से कहती हूं मैं कि मैं उस देश की निवासी हूं जहां शांति, शौर्य,वीरता,अहिंसा की भावना को अपनाया जाता है
हां गर्व से कहती हूं मैं की मेरा जन्म भारतभूमि में होना ही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि को दर्शाता है
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उन्होंने चाहा समझाना सुकून मुझे
मैं पहाड़ समझ बैठी
वो समझा रहे थे इश्क मुझे
और मैं नादान,
गढ़वाल समझ बैठी.....
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कहता है ये जमाना अक्सर अब मुझे
कि
जाने क्यूं अब तुम मिलती नहीं
तुम तो मिल जाती हो मगर तुम अब मिलती नहीं-
ये रात का काला साया कुछ तो घिनौना सा है
सहमा है मानो सारा शहर मगर कुछ तो मचलता शोर सा है
ये रातें अंधेरी होकर भी मानों उन पलों पर प्रकाश डालती हैं
जिन्हे वो हर कीमत पर बस ओझल कर देना चाहता है
और आंख मूंद कर सन्नाटे के शोर में मानो वो पल फिर से जीवित हो उठा हो
और चीख चीख कर बस उसे अपने आगोश में भर लेना चाहता हो ,
जहां से वह चाह कर भी छूट न पाए, ठीक पहले की तरह
इसीलिए ये अंधेरी काली रात का एक एक पल गुजरना बहुत मुश्किल सा है
जाने क्यूं सुकून होकर भी इस पल में कुछ तो घिनौना सा है
जिसके कारण वो चांदनी के नूर को भी दरकिनार करके बस सुबह की रोशनी का इंतजार किया करता है-
शायद नाराजगी इंसानों की होती तो एक पल के लिए मैं माफी मांग लेती उनसे,पर यहां तो मेरे शब्द,मेरा वजूद,मेरा अस्तित्व भी कुछ इस कदर मुझसे खफा है
कि घंटों गुजारे मैंने डायरी के सामने पर मजाल जो एक शब्द भी पन्नों पर उतर आया हो.....
बहुत सोच समझ के बाद भी आखिर में अगर कुछ बच जाता है तो वो चंद शिकायतें
जो दुनिया से नहीं बस खुद से हैं और इस से बुरा है कि मेरे पास खामोशी के अलावा उनका कोई जवाब भी नहीं-
हवाओं सा बहता हुआ मैं बादल बादल फिरता हूं
कोई बता दे पता सुकून का
जिसकी तलाश में,
मैं पागल पागल फिरता हूं
सूरज सा तेज नहीं मुझमें मैं सर्द सा एक नीर हूं,
ना कोहरे सी नमी मुझमें मैं तो ठहरा हीर हूं
मैं तो ठहरा हीर हूं 💓
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उन चादरों की सिलवटों को पकड़े शायद वो कुछ कहना चाहती है,
कुछ ऐसा जो शब्दों में पिरोया नहीं जाता,और दफन वो हो नहीं पाता
कुछ ऐसा जो उसे खाए जा रहा है बनकर दीमक उसकी खुशियों का
कुछ है जो नोच रहा है हर कतरा कतरा धीमे धीमे
जो हर रात के अंधेरे में उसकी सांसें रोक लेता है,
जिसके डर से हर रात उसका गला सूखने लगता है
और कुछ पास न होते हुए भी कुछ दूर जाने का डर होता है
वो आंखें बंद करे तो अंधेरा मानो अपनी ओर खींचता चला जाता है
और जो आंखे खोले तो सामने हर वो तस्वीर दिखती है जिस से वो सिर्फ भागना चाहती है
वो समझाती है अपने मन को कि सब ठीक तो है
बतलाती है अपने मन को कि हिम्मत अभी बहुत है
आंखों को थकाती है ताकि थक कर सोने की जिद करने लगे
लेकिन रूह?
वो तो बस कांपती है सोए,उठे,बैठे,खड़े वो बस कांपती है
और बस तड़पती है चंद सुकून की सांसों के लिए....-