किसी को लगे खाली किसी के हमराज रहे,
मौसम के आते तक पत्ते ,पेड़ो से नाराज रहे ।।
कभी रोका लहरों ने ,कभी आंधियों ने घेरा ,
फूल की ख्वाहिश थी कि कांटे सरताज रहे ।।
तेरी परछाई तक पहुंचते गुजर गया एक जमाना,
नज़र न मिल पाई हम लफ्जों के मोहताज रहे ।।।
दिल में दफन कर दिया खुद ही को मैने फिर ,
जो सिल गए मेरे होंठ, तो कुछ राज़ ,राज़ रहे ।।
दौर-ए-तवंगर हावी है अभी मुफ़लिसी में आयुष ,
सोने का सेहरा उनका, हम कहां कागज का ताज रहे ।।
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