Ayush Pandey   (Ayush Pandey)
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"Chef fellow despair entia"
Joined 27 February 2018


"Chef fellow despair entia"
Joined 27 February 2018
21 MAR 2022 AT 21:49

ग़म ए इश्क़ से उबरना कैसा होता है,
वादा ए इश्क़ के मुकरने जैसा होता है,

मैंने कभी किसी जोड़े को बद्दुआ नही दी,
पर ये। भी सच है कि जैसे को तैसा होता है,

मुफलिसी थी और कुछ खुशी चाहिए थी मुझे,
पर जिंदगी में या खुशी या फिर पैसा होता है,

सूखी आंखों के हवाले से सावन बरसा करते है,
इक ऐसी मोहब्बत होती है इक रोना ऐसा होता है,

मोहब्बत ए मंज़िल के हाल कुछ ऐसे है अल्फाज़,
या मंज़िल पायी जाती है या मंज़िल होना होता है।

(अल्फाज़_


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11 MAR 2022 AT 17:55

What's there when we live,
And what is left when we leave,
It's a moment,
It's a moment
We get trap we console,
It's a grave that fits our soul,
It was desired and it was destined,
To be you as a part of this whole.
Love the moment ,
live the moment,
It's a moment ,it's a moment...
-Ayush_pandey

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6 MAR 2022 AT 1:29

एक ख़त प्रेम को प्रेम के हवाले से

भाग - 2

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6 MAR 2022 AT 1:27

एक ख़त प्रेम को प्रेम के हवाले से

भाग - 1

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3 FEB 2022 AT 22:46

More than a gender indicating words,
Masculine and feminine are characters,
Adhere ,adopt it..
:© Ayush Pandey

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24 JAN 2022 AT 0:51

यदि तुम्हारे लिए प्रेम स्वयंभू है तो,
विरह की पीड़ा में सत्यता रखना।


अल्फ़ाज़__

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23 DEC 2021 AT 12:21

फिर किसी से भी नज़रें मिलाई न गईं,
पहली मोहब्बत ऐसी थी कि भुलाई न गई,

वो लड़की मुझे अपना सबकुछ मानती थी,
मुझ अनाड़ी से ही मोहब्बत निभाई न गई,

वो लोग जिन्होंने मेरी आंखों को पढ़ लिया,
उनके लबों से मेरी कहानी बताई न गई,

मैंने उसके हक में ये दुआ मांगी थी ,और,
वो मुझसे बिछड़कर फिर सताई न गई,

एक दूजे के वास्ते हमने पन्नो पर कुछ लिखा था,
इश्क़ सच्चा था लिहाज़ा अभी तक स्याही न गई,

वक्त ए रुखसत जैसे उसने माथा चूमा था,
अल्फ़ाज़,फिर इस बदन में रुह समाई न गई

(अल्फ़ाज़_

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2 DEC 2021 AT 23:33

ख़ुद का एहसास खुद पर भारी रखा,
बदहवास रहा और चलना जारी रखा,

जो काम आए मैंने वो सब कुछ दे दिया,
खुद के लिए खुद में थोड़ा बेकारी रखा,

ये हाल ए एहतियात है अब मददगारों से,
धूप में शज़र मिला पर चलना जारी रखा,

क्या और कहे हम ऐतबार के हवाले से,
टूटने का सिलसिला था तो और जारी रखा,

बदलकर मौसमों ने अपना फ़र्ज़ अदा किया,
और कुछ ने पूरे साल ये काम जारी रखा,

सफर में उसको देखते नज़ारे नहीं देखे,बिन
उसके सफ़र नज़ारो से तर्क ए नज़र जारी रखा।
(अल्फ़ाज़__

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23 NOV 2021 AT 10:57

हम फिर एक शहर से निकाले जा रहे है,
हमें कुछ खानाबदोश बुलाने आ रहे है,

हमे कहां पता कि मंजिल कहा ठहरेगी,
जरूरत ने कहा है तो हम चलते जा रहे है,

हमें अजुली भर भी पानी नहीं मिल रहा,
न जाने औरों के लिए कैसे प्याले आ रहे है,

मेरा हक मेरे हिस्से में आकर चला गया,
छीनने वाले उसे वापस दिलाने आ रहे है,

मैं अब चेहरे को तरजीह देता ही नही,
आजकल चेहरे मतलब से निकाले जा रहे है,

मैं अब दरिया से रहने को पनाह मांगूंगा,
इस बाबत कुछ लोग मुझे डुबाने आ रहे है,

(अल्फ़ाज़_



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6 NOV 2021 AT 20:01

ज़िंदगी से उबरा तो मैं घर आया,
हर रास्ते से गुजरा तो मैं घर आया,

मुझे यूं तन्हा रहना पसंद नहीं इसलिए,
दीवाल ओ चौखट से मिलने मैं घर आया,

इस बार कम नज़रों ने ही पहचाना मुझे,
मुझे खुद को ढूंढना था तो मैं घर आया,

सभी सयानो को समझदारी मयस्सर थी,
मैं बचपन में उलझा था तो मैं घर आया

©(अल्फ़ाज़_

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