Ayush Khare   (Aakash)
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कुछ गलत कुछ सही काफिया मिला लेते हैं, बस यूँ ही खुद को लेखक बता लेते हैं||
Joined 30 August 2018


कुछ गलत कुछ सही काफिया मिला लेते हैं, बस यूँ ही खुद को लेखक बता लेते हैं||
Joined 30 August 2018
14 OCT 2019 AT 0:55

ज़ख्म पर यूँ भी, मरहम लगाती है।
दिल तोड़कर मेरा , मुस्कुराती है ||

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25 SEP 2019 AT 23:17

इक अंधेरी कोठरी में , था अंधेरा भी घना।
एक दीपक फिर जला, सारा अंधेरा छट गया।।

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29 AUG 2019 AT 12:33

अभी तो मुझे ,बहुत संवरना पड़ेगा।
राह लंबी है , बहुत चलना पड़ेगा।।

अब तो सायें ने भी छोड़ दिया है साथ मेरा।
इस राह में अब बहुत , सँभलना पड़ेगा ||

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28 JUL 2019 AT 9:46

यादों से तेरी अब , किनारा कर लिया|
हमने भी इश्क़ , दोबारा कर लिया ||

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15 FEB 2019 AT 18:40

भारत माँ का शीश झुके ,अब ऐसी बात नहीं होगी |
अफ़ज़ल या फिर हो कसाब , उनकी औकात नहीं होगी||

जो गोली की भाषा समझे , तो तोपों से बात करो|
सरहद पर जो शीष कटे , तो इस्लामाबाद पे वार करो||

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7 FEB 2019 AT 0:27

तुझमे है खुद को भुला दिया , पर तुझे भुलाना बाकी है।

तू करती मुझसे प्यार नहीं , अभी समझ में आना बाकी है||

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6 FEB 2019 AT 23:47

दिल को बहलाने का कोई सामान नहीं हूँ।
इतना भी मैं अब आसान नहीं हूँ ||
बसी हैं लाखों कमियाँ मुझ में,
इंसान हूँ ,कोई भगवान नहीं हूँ ||

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27 OCT 2018 AT 23:13

जो करना आगाज़ तो , अंजाम तक लाना|
बस कुछ इस कदर तुम ,हमारी कहानी बनाना||

इक रोज़ भूल कर सारी दुनिया ,मुझमें ही मशरूफ हो जाना |
बस कुछ इस कदर तुम ,हमारी कहानी बनाना||

डूबे जो कभी कश्ती मेरी ,तुम साहिल पे लाना|
बस कुछ इस कदर तुम ,हमारी कहानी बनाना||

रूठूँ अगर कभी तो ,तुम मुझे मनाना|
बस कुछ इस कदर तुम ,हमारी कहानी बनाना||

बिन कहे मेरी हर बात समझ जाना, इतनी शिद्दत से ये रिश्ता निभाना |
बस कुछ इस कदर तुम ,हमारी कहानी बनाना||









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17 OCT 2018 AT 9:36

खुद के ख़्वाबों का इक शमशान हूँ,
बड़ा बेपरवाह मैं इंसान हूँ ।
ऐ ज़िन्दगी , मैं तुझसे बहुत हैरान हूँ ।।

हूँ अपनों की भीड़ में खड़ा ,
अपनों से ही अंजान हूँ ।
ऐ ज़िन्दगी , मैं तुझसे बहुत हैरान हूँ ।।

हर पल मांगी मन्नत तुझे पाने की ,
अब भी तेरे दिल में महज़ मेहमान हूँ |
ऐ ज़िन्दगी , मैं तुझसे बहुत हैरान हूँ ।।

है कोशिश की हर ख्वाब ,कर लूं मुकम्मल ,
इक अधूरी सी अभी दास्तान हूँ |
ऐ ज़िन्दगी ,मैं तुझसे बहुत हैरान हूँ ||

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30 SEP 2018 AT 15:33

ना वज़ीर हूँ मैं , ना राजा हूँ मैं, महज़ इक प्यादा हूँ मैं|

वो प्यादा , जिसके रोज़ सरहद पर सर कट जाते हैं ,
चंद तमगे , जो मेरे घर की दिवार पे टंग जाते हैं।

वो दिवार ,जिसके नीचे अब मेरा परिवार भूखा सोता है,
दाने दाने को मोहताज़ , मेरी कुर्बानी पे रोता है।

वो कुर्बानी , जिसने तुम्हे महफूज़ बनाया था,
सो सको तुम चैन से , इतना भरोसा दिलाया था|

वो भरोसा , जो तुम सब से अब मैं खो रहा हूँ,
उतनी ही शिद्दत से मगर अब भी मैं कुर्बान हो रहा हूँ।

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