तुम्हारे बालो पर जो चाँदी चढ़ने लगी है,
मेरी आँखों को अब ये भाने लगी है।
तुम्हारे चेहरे पर पड़ने वाली ये झुर्रियाँ
अब मेरे दिल को सताने लगी है ।
तुम्हारे ये हाथ जो कभी तुम मेरे चेहरे पर फेरती थी
इनमे अब कप कपाहट सी आने लगी है।
तुम्हारी ये ढलती हुई कमर अब
तुम्हारे योवन को ढाने लगी है ।
तुम्हारे पैरो की कमजोरियाँ ,
मेरे हर कदम साथ चलने वाले विस्वास को गिराने लगी है।
मगर मैं हरदम तुम से सिर्फ तुम्ही से इश्क़ करता रहूंगा
रब से यही अरदास लगी है ।।
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.. वो जो तुम्हारा चेहरा देख,उस पर लगे
तिल को दाग कहते थे ।।
.. उन्हें क्या पता था,
भगवान ने दौलत ए ललाम (हुस्न) पर
चौकीदार बैठा रखा है ।।-
सोचा लफ्ज कुछ उधार लेते हैं ।
आज इस चाँद को नजरअंदाज कर देते हैं ।
तारों से सजी इस महफ़िल में,सजदा आपका कर लेते हैं ।
मिले तो कई लोग हैं, इस जंगल में
सोचा आपको ही अपना कर लेते हैं ।।
नजर न लग जाये इस बाली उम्र को,
सोचा जाग रहे है ,तो अभी मुबारकबाद दे देते हैं ।।।
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।। इस कदर तो बेरहम न बनो ।।
।। इतना तो हम पर तरस करो ।।
।। इश्क में तुम पर जान देते है।।
।। तुम नुक़्ता तक न देते हो ।।
।। सब कहने लगे हैं,इतना न मरो उन पर।।
।। कहीं सच मे, मार न डाले।।-
|| गुरु से हो ज्ञान प्राप्ति ।।
।।। पिता से मिले सहसंघर्ष ।।
।। माता से हो संस्कार प्राप्ति।।
।।। दुनिया से मिले पूर्ण संघर्ष।।-
।। करूँ भी तो कैसे करूँ।।
।। न जाने क्यूँ मैं ही करुँ।।
।। तुझसे गिला,शिकवा,शिकायत
मैं कैसे करूँ ।।
।। चाहूँ तो मैं करना लेकिन
मँझता नही किस से करुँ ।।
।। लोगो को भी मैं पाउँ न कर
उनसे बस तेरी तारीफ़े करूँ।।
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उफ्फ्फ ।।।।।।।।।
आपकी ये घनेरी जुल्फ़े, जुल्फों से घिरा ये नुरानी चेहरा।।
न घूमा करो यू बेनकाब आप, इस रूप को जरूरी है पहरा।।
लोग कहते हैं, तुम इसी तरह से कहर ढाती हो।
लोग कहते हैं, तुम इसी तरह से कहर ढाती हो।।
सबको मारने के लिये
हमने कहा --हमे तो उनकी एक झलक ही काफी
उन पर जाँ हारने के लिये।।-
।। दोस्ती ।।
अनचाहा एक श्राप है,जो जीवन भर का साथ है।।
दोस्त अनचाहा वो वाप है, जो सदा खड़ा तुम्हारे साथ है।।
यह एक ऐसा एहसास है, जो होता जीवन भर साथ है ।।
इनके साथ बिताया गया हर एक पल होता बहुत ही खास है।।
अनछुआ वो अहसास है, जिसमे न होता भेद-भाव है।।
न कोई कीमत है,न मोल है, ये अहसास अनमोल है।।
बिन माँगी वो दवा है, जिसे लेने से हर रोग दफा है।।
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इन पंछियों का मृदंग
इन पत्तियों का रंग ।।
या हो इस मिट्टी की सुगंध
जरा इससे इश्क़ करके तो देख
बहुत ही कमनीय है प्रक्रति का ढंग ।।-
।। ये क्लास रूम उसकी पसंद का है ।।
।। मगर मेरी शक्ल उसे पसंद नही ।
।। सब पूछते है, हाल मेरे दिल का ।।
।। मैं कह भी नही पाता
मुझे उसी का चेहरा पसंद है ।-