मैं अपना हर शब्द मेहफ़ूज़ और आयुष रखता हूं
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#कैफ़ीयत
मैं गया तो वो भी ठीक है जाए
वो जिसकी किस्मत में हो उसका घर बसाए
ऊपर वाला करें दिल साफ रहे उसका
और बस दुनिया की हवा न लग जाए
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#कैफियत
अपने घर के बाहर तुम्हारे नाम पर
मैंने हरियाली बढ़ानी है,पेड़ लगाने है
क्यूँकि दीवारों से बातें की जा सकती है
उन्हें गले नहीं लगाया जा सकता
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#kaifiyat
है पास कहाँ पर दूर भी नहीं
कहीं किसी कोने मगरूर भी नहीं
किसी रोज़ देखा था जो ख्वाब है अब
के निगाहों में अब वो नूर भी नहीं
हाँ पर जुदाई में यार दर्द तो है
जब गुफ्तगु न कुछ फितूर भी नहीं
जो मर गया हम में प्यार ही था
कोई शर्म तो नहीं पर गुरूर भी नहीं
कम्बख़त वक़्त है आगे तो बढ़ेगा ‘फर्ज़ी’
कुछ मुख्तलिफ़ कहाँ पर बादस्तूर भी नहीं
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#kaifiyat
दुआ है दोस्त तुम्हें हर दर्द की दवा मिले
हमदम मिले यार मिले साथ ही वफ़ा मिले
वो दिन फिर आए काश के जब हम गले मिले
फिर चलें टपरी पर जहाँ सुबह शाम चाय मिले
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#kaifiyat
प्रिये... प्रेम के लिए आँखों में पानी चाहिए
पर समाज बोलता है तुम मर्द हो
तुमको तो रोना नहीं चाहिए
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