चाँद ने भी क्या ख़ता कर दी,
दर्द-ए-आशिक़ी को आशियाँ देकर
हर दाग़ झेला है,
आशिक़ों की सिसकियाँ लेकर।🌝-
तुम्हारे प्रेम का प्रकाश बहुत है।।❣️❣️❣️
For individuals living out similar fantasies, their thoughts are real relative to each other.
—Ayush Arya-
न बेक़रार हो मांझी, तुम आग की तरह,
ये दरिया आकुल है, तुमको भिंगोने को।-
जिस पेड़ की छाव मे हर रोज आराम फरमाते थे कुछ लोग,
आज विकास की ख़ातिर उस पेड़ की क़ुर्बानी हुई,
पेड़ क़ुर्बान हुआ! लोग टूट पड़े, उसे बचाने के लिए नहीं;
बल्कि उस पेड़ के हर भाग को लेने के लिए।
ताकि वे जला सके इसे और भोजन बना सकें।
...
अबतक इस पेड़ की शीतलता ने लोगों के तन को शांत किया,
और अब इसकी उष्णता, गरीबों के उदर को शांत करेगी।
"त्याग हो तो पेड़ जैसा!"-
जिनको मेरे लहज़े से दुःख होता है, वो खुल के कहें
जिनको मेरे शब्द शूल लगते, वो खुल के सहें
अभी मै जूझ रहा हूॅं, खुद के रंजों से
अभी मै सीख रहा हूॅं, कुटिल-भुजंगों से
अगर यह ताप थम गया, रकीब़ शुक्र करो
मेरी अख़्लाक़ ने अब तक यह भरम रखा है।-
ये दुनिया बड़ी बेरहम है,
यकीन मानिए जिस दिन आप कमजोर पड़ेंगे ये आप पर हावी हो जायेगी।-
समय की एक ख़ूबसूरती यह भी है की यह अपने बीतने के साथ हमारे निश्छल स्नेह की प्रगाढ़ता को और भी पुष्ट करता है।
❤️❤️❤️-
ग़र है ज़मीं बाकी, तो है जहां मेरा
ग़र सब्र है जिंदा, तो हूँ अमीरी मे
सब दौलते फीकी, ग़र रूह भूखी हो
हर ताकतें झूठी, ग़र पीर दिल मे हों।
मै हूँ सवाबी में, ग़र तुम समझते हो
तो आ फ़क़ीरी से, तुम रूबरू हो लो।-
ये मन भी न कितना भुलक्कड़ है, बहुत जल्दी चीजों को भूलता है इसे सफलता के बाद आने वाली ख़ुशियाँ व सुख तो बख़ूबी याद रहते हैं, परंतु उन सफलताओं को प्राप्त करने के लिए किए गए संघर्ष यदा-कदा ही याद रहते हैं। शायद सफलताओं के फूल संघर्षों के काँटों को अपने पंखुड़ियों तले ढक देते हैं। यह भूलने की प्रक्रिया तो मन को हल्का रखती है परंतु इसके कुछ अवगुण भी हैं। मसलन जब हमारे जीवन में संघर्षों का दौर आता है तो मन कमजोर पड़ जाता है, शुरू में तो इसे लगता है कि यह कार्य असंभव है। परंतु इस भुलक्कड़ को क्या पता कि उसने ऐसे न जाने कितने संघर्षों से पार पायी है, और यदि मस्तिष्क पर थोड़ा जोर दे तो ज्ञात होगा कि शायद इन संघर्षों का स्तर पिछले संघर्षों से थोड़ा ही ऊपर अथवा नीचे है। फिर इन परिस्थितियों मे हमारा मनोबल गिरता क्यों है? यदि हम इन बातों पर विचार करें तो कभी ऐसा लगता है यह भूलने की प्रक्रिया ठीक है और कभी ऐसा लगता है कि यह प्रक्रिया दोषपूर्ण है।
पाठकगण स्वयं विचार करें...
—आयुष आर्य-
नींद रोती है अब रात की गोद मे,
स्वप्न खोते हैं अब अश्रु के ओट मे,
धवाति ये उमरिया, किधर लक्ष्य है?
बोझ ढोता फिरूं, क्या यही सत्य है?-