ayasha✨   (DASTANE ALFAZ)
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Joined 24 September 2019


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Joined 24 September 2019
3 APR 2024 AT 20:34

। प्रेम ग्रहण ।
ना हासिल थी तो मैं खुबसूरत औरत हुँ,
अब जो हासिल हुँ तो मैं बदसूरत औरत हुँ।
दूर से तखता था वो मुझे तो मैं नायाब औरत हुँ,
मैंने बिठाया उसे बराबर आपने तो मैं आम औरत हुँ।
मान जाऊ बात उसकी तो नेक औरत हुँ,
उसके खिलाफ बोलु तो बदकिरदार औरत हुँ।
उसके दिल के ऊरूज पर हुँ तो चाँद औरत हुँ,
उसको दिल में बसा लिया तो दाग औरत हुँ।
उसके साथ चालु तो मैं अच्छी औरत हुँ,
यु मैंने आपना रास्ता चुन लिया तो मतलबी औरत हुँ।
उसके घर जाऊ तो इज्जतदार औरत हुँ,
मैंने आपना घर बसा लिया तो मैं बाजारु औरत हुँ।
उसके मुताबिक रहू तो मैं अफजल औरत हुँ ,
मैंने आजादी सोची तो तमाशाई औरत हुँ।
वो छुले मुझे तो मैं पाकजात औरत हुँ,
कोई गैर देख भी ले तो नापाक औरत हुँ।
उसके साथ बिताऊ रात तो मैं बा-किरदार औरत हुँ,
उसे छोर जाऊ तो रखैल औरत हुँ।

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3 FEB 2024 AT 23:10

बे-लिबाज हैं सच्चाई,
झूठ ने हजारो परदे लगा रख्खे हैं।
रौनके सारी लुट ली महलो ने ,
पर अब भी कुछ खंडर हम ने विरान रख्खे है।

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14 JUL 2021 AT 21:14

मेरे जिन्दगी का ये आलम देख,

वो फकिर भी रो पड़ा

जो कभी लंबी उम्र कि दुआये दिया करता था ।

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14 JAN 2021 AT 20:30


___तु__

मेरे शायरी के हर लब्ज में तु ही तु और तेरा अक्स है,
मेरे हर हर्फ के मायनें में तु ही तु और तेरा वजुद है ।

मेरे परदा-यें-तस्बीर में तु ही तु और तेरी सुरत है,
मेरे दिले रेगिस्तान में तु ही तु और तेरी बहार है ।

मेरे डुबते तकदीर में तु ही तु और तेरा अफताबें-ए-ताबाँ है,
मेरे लबों-लेहजे में तु ही तु और तेरी पेहचान है ।

मेरी सारी अज्जयतो में तु ही तु और तेरा साथ है,
मेरे खोफनाक माजी में तु ही तु और तेरा सुकुन है ।

मैं सवार हुँ कश्ती में तु ही तु और तेरा किनार है,
मैं तो कुछ भी नहीं मुझ में तु ही तु और तेरा मोजजा है ।

मेरे हुस्न के महक में तु ही तु और तेरा इत्र है,
मेरे हर सलिवटो में तु ही तु और तेरी फिक्र है ।

मेरे विरानयत में तु ही तु और तेरी रौशनाई है,
मैं ओस सर-जमी में तु ही तु और तेरा गुलिस्ता है ।

मेरे ना-कबिलीयत में तु ही तु और तेरी कबिलीयत है ,
मेरे हार में तु ही तु और तेरे जित का आगाज है ।

मेरे हर सवाल में तु ही तु और तेरा जवाब है,
मेरे हर अल्फि से लेकर यें में तु ही तु और तेरा जिक्र है ।

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24 NOV 2020 AT 12:06

इश्क.........

उसने जब से मुझे मंजिल बना के रखा है ,
मैंने भी खुद उसके नाम का पता बनाये रखा है ।

वो जो मुझे देखकर पलके झपकाता नहीं,
हा उसी शख्स के अंदर मैंने मेरा अक्स सवार रखा है ।

लबों से जो हर रोज शबनम पिलाता है मुझे,
हा मेरे प्यास ने उसी को आपना दर्या बनाके रखा है ।

उसने मेरे जुल्फ को आसमान से सजाया है,
मैंने भी मेरे बालो को और गहरा करके रखा है ।

उसने मेरे बाहों में उम्र गुजार ने कि सोची है,
मैंने भी मेरे बाहों को और मजबुत बनाये रखा है ।

आँखों में उसके मुझे मेरा मुस्तकबील दिखता है,
मैंने भी मेरे मुक्कदर को उसी के लिये बचायें रखा है ।

उसकी सासों में शामिल है मेरी सासें,
मैंने भी हवाँओ का ऱुख उसके रुख से मिलाये रखा है ।

उसकी धडकन में सुनाई देती है मेरी धडकन,
इसी बहाने मैंने मेरे दिल को उसके दिल से जुडाये रखा है ।

वो मुसाफिर है मेरे इश्के मंजिल का,
मैंने भी रहें इश्क को गुलिस्ता सा बहारे रखा है।

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21 AUG 2020 AT 8:54


आवाज दि थी हमनें भी ऐ जिन्दगी तुझे,
तु बडी खुदर्गज निकली जमाने में।

कही धुप थी कही छावँ थी कही मुश्किल की घडी थी,
मेरे हिस्से में तु जब आई ऐ इम्तिहा की घडी थी।

वैसे तो शिकवा नहीं तुझे से कोई ना शिकायत है,
बस गिला इस बात का कि तु मेरी ना हुई ।

मैं महज संमदर बन रह गया मुझे से मेरी प्यास ना भरी,
बादल भी हस पडे बादशाह पर की अब वो रहनुमा न रहा।

लाख पुकारा तुझे ये जिन्दगी तु मेरी न हुई मेैं तेरा न हुआ ,
कहने वालो का कँहा कभी सच ना हुआ ,
धुडा तुझे बोहोत तु मुझे ना मिला और मैं तुझे ना मिला ।

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14 JUL 2020 AT 17:22

ऐ इश्क तु हासीन इतना है की भुलाया नहीं जाता,
अब किसी और को खयालो में बसाया नहीं जाता।

ऐ इश्क तुझ में दर्द है और है सुकुन भी,
दर्द इतना की सहा भी नहीं जाता
सुकुन इतना कि अब दर्द याद भी नहीं आता।

ऐ इश्क तुझ में ठहराव भी है और जुनुन भी है,
ठहराव इतना की दर्या संमदर में तकबील हो जायें
जुनुन इतना कि जमाने को मात दे दी जायें।

ऐ इश्क तुझ में नशा भी है और खयाल भी है,
नशा इतना की जिन्दंगी नशे में बीत जायेंगी
खयाल इतना कि अब कोई शराब मुझे मुँह ना लगायें
गी।

ऐ इश्क तुझ में जख्म भी है और दवा भी है,
जख्म येसा कि अब भरा नहीं जाता
दवा येसी की कोई जख्म हरा भी नहीं रेहता।

ऐ इश्क तु लब्ज में अब बया नहीं होता,
जज्बात का भरा गुलिस्ता है तु
अब तुझ से बिछडकर जिया भी नहीं जाता ।



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27 JUN 2020 AT 8:42

माजी बनकर बैठा है सरेताज तेरा,
क्या इतना बुजदिल है आज तेरा...

तेरे ही अतीत के पन्ने है सब ,
धुल जम चुकि है जिसपर सब बेकार है अब..

छोड दे दौहराना माजी को आपने मेहनत से फतह कर हार बाजी को,
इन्सान ही तो है सब गलतीयों के पुतले यँहा,
फिर क्यों तु ही फसा बैठा है आपने मुक्कदर को।

तु कुछ येसा कर कि तेरा मुस्तकबिल तुझ पर फक्र करें,
तो तेरे कलसे ताने देते थें वो तेरे आज के कसीदे पढें।

जंग का आगाज कर जो हो चुका उसपर मातम ना मना,
इन्सान है तु , तु एक नया इतिहास रचा।

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18 JUN 2020 AT 15:03

एक वही था........................
जिसकी तलब ये दिल बार-बार हर-बार करता रहा,
जिसका मर्तबा आफताब से भी जादा रौशन था।

आस्माँ का परवाज वो कँहा कफसे इश्क में आता,
वो तो खाबों का शहसवार राजकुमार था कँहा असलियत में उतरता।

अर्जिया बोहोत की मैंने दिले दरबार में उसके,
हरबार मुझे बेवफा के तोहमत से नवाजा गया।

शम्सी शख्सीयत उसकी वो शख्स चाँद न हुआ,
बोस पेशानी के जो लेता था कभी,
मेरे मुक्कदर में कँहा वो दिवाना अदा हुआ ।

जब्त कर लेता हुँ मैं मेरे हर जज्बात को अब,
क्योंकी जिता जागता इन्सान महज एक मुजस्समा हुआ।

आज सुनाई मैंने वाकीयात तेरे होने की,
एक वही था खाब जो ताबीर ना हो सका।

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7 JUN 2020 AT 13:18


अभी कल ही की तो बात थी,
खुशयों की यँहा सौगात थी।

फिर ना जाने क्या हुँआ बस्ती को,
वबा आगई ये अमिरों की मेहरबानी थी।

गरिब भुख प्यास से मर गया,
एक अन्नाज के दाने को तरस गया।

मजदुर की दास्तान भी कुछ ऐसी है,
मजबुरी के बोझ से दबी उसकी हालात है ।

फिर एक भंवनडर आया बसाया जो चमन था
एक रकिब का उझाडकर वो रवाना हो गया।

अब बे-घर है वो गमों से चुर है वो,
उम्रभर की कमाई को उझडता देख बेहाल है वो।

रियासत तो उलझी है तोहमते लगाने में,
नारी अभी भी जुल्म सह रही है जमाने में ।

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