जट गंग विराजत,गल मुंड माल धारत, मस्तक चन्द्र सजाये है
कर पान हलाहल,कर देव निवारण,नीलकंठ कहलाये है
सिंह चर्म के आसन, कर शक्ति संग शासन ,कैलाश धाम बनाये है
भौर भृकुट, विकराल रूप वो महादेव प्रभु आये है!!
कर त्रिशूल धारे, नंदी पांव पंखारे ,डम डम डमरू बजाए है
शमशान निवासे, म्रत्यु हरियता क्रोधित हो तांडव लाये है
बेल पत्र प्रशन्ना,त्रिनेत्रों ,भोले सर्व जगत नचाये है
भौर भृकुट विकराल रूप वो महादेव प्रभु आये है।।
,भूत जिनको ध्याये , तन भस्म रमाये, भूतनाथ बन जाये है
देवों में उत्तम, अनादि अनंतं ,अखंड शिवाये कहाये है
रामा आराध्य, सागर कर बाध्य,सेतु रामेश्वर कहाये है।
भौर भृकुट विकराल रूप वो महादेव प्रभु आये है।।2।।
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