Awasthi Rahul  
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Joined 5 August 2017


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Joined 5 August 2017
28 JUN 2022 AT 23:58

आज मंगल, सोम के दिन ही हो गया
तुम आईं और मेरे सारे ग्रह स्थान पर नियत हो गए
कजरे से भरी वो आँखे और तीक्ष्ण नक़्श
मानों आकाशगंगा से मुखड़े पर सुंदर सितारे
माथे पर गोपीचन्दन का तिलक
और नयनों के कोने में दो बिंदियाँ
पहले रक्तचंदन, फिर गोपीचन्दन
मानों वृन्दावनिता मेरे समक्ष ही खड़ी हो
कंचन सा बंधेज का वो सूट और मोती-चमक से लदा दुपट्टा
बस ईकटका रह गया मैं
तुम मुस्काईं, कुछ बतियाईं और वासंती हवा की भाँति
मुझे छूकर, मेरे तन-मन को अपनी खुशबू से तर कर गईं..
तुम्हारा नाम तो नहीं जान पाया मैं, पर सुनों कनकश्रृंगा
अपना हृदय मैं तुम्हारे पास छोड़ आया हूँ
तुम सदैव काजल और गोपीचन्दन लगा कर रखना
जिससे मैं तुम्हारी खुशबू को पहचानकर
सदैव के लिए सराबोर हो जाऊँ
प्रिये, हम दोबारा मिलेंगे...❤️

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8 MAY 2022 AT 14:03

माँ....
एक अटल-शब्द के जड़ मूल में, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया है
रचना एक काल की जिसका, स्वयं काल भी पार न पाया है
है अडिग सुमेरु – हिम आलय सी, प्रबल पराबल अलकनंदा सी
शांतचित्ता है प्रकृति सी, सहनशीलता में जलधि सी
निःस्वार्थ भाव हो सदैव ही जिसने, अपना सर्वस्व स्नेह लुटाया है
स्व-गतिमान हो अग्निपथ पर , सुत-सुता पुष्पांचाल में छुपाया है
सह सतत क्षुधा व काट उदर को , सत वंश तृप्त कराया है
विषानुभवों को अवशोषित कर, जीवनपथ अर्थ सिखाया है
नाम एक सन्निकर्ष सहस्त्र, बिन विश्राम जिन्हें निभाया है
हैं धन्यभाग रे मानव तेरे
जिसे स्वयं जगदम्बा ने, अपनी गोद खिलाया है
भूत , वर्त और भवि ऋणी हैं
हे मातोश्री !!
क्यूँकि तुमनें अंत-आरम्भ जनाया है

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2 JUL 2021 AT 22:41

बेइन्तहा हुआ
ईश्क़ उस पल
ज्यों चुराई नज़रें
तुमनें ओ बेनज़ीर
चुपके कुछ यूँ तका
आराईश अब्ज़ारों से
दीदार हुए पाक़ीज़ा
जाज़िब मुस्कान के
और ईश्क़
मुक़म्मल हो गया

-शब्द


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8 MAY 2021 AT 23:07

We came, We saw, We loved!
A touch that can never be forgotten,
A feeling that brimmed our hearts with love,
A redolence that never faded,
An immortal faith,
An eternal bond, which unifies us,
Ayes, mon amour, mon chéri,
You were, you are
&
will always be mine,
till my last breath,
And that's my vow to that first kiss,
Te Amo.....❤


©शब्द

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21 APR 2021 AT 20:12

राम नाम लीजे बिना, पूरण होए न कोई काम ।
जग मिठबोला काम का, मेरे तो रोम रोम में राम ।।

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27 MAR 2021 AT 21:58

स्मरण रहे :

आमदनी पर्याप्त न हो तो ख़र्चों पर नियंत्रण रखिये
ज्ञान पर्याप्त न हो तो शब्दों पर नियंत्रण रखिये


- अज्ञात

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19 MAR 2021 AT 22:27

नद-जल, पत्थर रहते साथ
पर आगे बढ़ता कौन ?

सरोवर और सरिता में रहता
उत्तम जल है कौन?

© शब्द

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17 JAN 2021 AT 23:51

जहाँ सज्जन होते हैं,
वहाँ संवाद होते हैं..

परंतु

जहाँ मूर्ख होते हैं,
वहाँ मात्र विवाद होते हैं..

- अज्ञात

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31 DEC 2020 AT 23:18

नई उमंगें..
नई ऊर्जा..
नए सपने..
और
वो देखो..
इन सभी को लिए..
नव वर्ष आ रहा है..
देखो ज़रा उस ओर..
न कोई दुविधा है..
न कोई व्यवधान..
न मतभेद, न वैमनस्य..
न भेद भाव, न भिन्नता..
प्रतीत हो रहा है मानों..
सूर्यकिरणों से सिंचित नवजीवन..
एक नए युग में प्रवेश कर रहा है..
नववर्ष की शुभकामनाएँ 🙏🏻 (शब्द)

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14 NOV 2020 AT 1:24

आइये इस दीवाली भी एक दिया हम अपने
और अपनों की ख़ुशी के लिए प्रज्ज्वलित करें और कामना करें कि आनें वाले वर्षों में हमारा जीवन रोशनी से भरा रहे ।

मेरी एवं परिवार की ओर से दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏🏻

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