ऐसे कब तक तरसाओगी, कोई तो सुख खबर सुनाओ नैन भरे हैं सजनी तुम बिन, अब तो लोट चलि आओ। बेमौसम बारिस के जेसे कभी तो थोड़ा प्यार बरसाओ, बीत गई कई रातें रो कर, अब तो लोट चली आओ।
तमाम उलझने हैं इस सफ़र मे, अब खुद से बिछड़ने लगा हूं मै। उड़ान भरनी थी इस खुले आसमां मे, छोटे से एक पिंजरे मे सिमटने लगा हूं मै।
घर से दफतर, दफतर से घर, यही ज़िंदगी हो गयी है अब तो, जिन माँ बाप के साथ सांझा था बचपन उनसे ये तकलीफ बताने में झिझकने लगा हूं मै।
काली हो गयी हैं आँखे नींद अधूरी रहने से, फैशन वाले चस्मे के पीछे छुपने लगा हूं मै। उड़ान भरनी थी इस खुले आसमां मे, छोटे से एक पिंजरे मे सिमटने लगा हूं मै।
नशा नही तेरे इश्क़ का खुमार है ये कि मिटता नही, ढूँढना पड़ता है ये तो, प्यार कहीं बिकता नही। उसे शिकायत है मुझसे, अब मै कुछ लिखता नही। मै डूबा हूं उनमे, उसकी आँखों के सिवा मुझे कुछ दिखता नही।
शाम ढल चुकी है, अब बापस घर जाना है, थकान भूल कर, अपनो के आगे मुस्कुराना है। कौन हिसाब करेगा, दिन कैसा वीता आज, आँखों मे भर के सपने, उनमे खो जाना है।
सोचता हूँ एक शाम तो सुकून मेरे साथ गुजारे पल भर का साथी है वो, सुबह उसे भी लौट जाना है। याद आता है बचपन, जब कुछ ना होकर भी सब था, युगल अब सो जा, कल फिर से ऑफिस पर जाना है।