जिस शरीर के साथ हम पैदा हुए है इस शरीर के ही जिम्मेदार हम नहीं है, परन्तु अपने चरित्र, व्यक्तित्व तथा जिस किरदार के साथ जब हम विदा होंगे तो उसके जिम्मेदार हम स्वयं है .......
जब टूट के बिखर जना, तब किसी की आवाज बनना जब कोई हवा तुम्हें बुझाने लगे, तो अंधेरे का प्रकाश बनना, जब डर तनहाई सताने लगे, तो दहकता हुआ मशाल बनना, जब तुम्हें लोग जला दें, तो तुम बेशुमार राख बनना ...... तुम्हारे जीवन में कुछ बचे या ना बचे, लेकिन एकबार फिर से भागवत का सार बनना...
ज़िन्दगी का कोई पहलू छूटा नहीं मग़र ठीक से अभी जिया भी नहीं.. हाथों से अपना कोहिनूर हमने फिसलते देखा वो बचपन से जवानी के पल का आज पता भी नहीं.... हल्की-हल्की महक सी याद हरपल आती है, मेरा बेचैन दिल आज भी सँभलता नही..... अभी कबतक किसके इंतजार में जिंदा रहूँ मैं अब तो किसी के होने का कोई फर्क पड़ता भी नहीं......