ना हाथ जुगनू आए और चरागों ने जला दियाजिंदगी ने फरमाबरदारी का ऐसा सिला दियाथोड़ी देर और बुत बनकर रहता तो डूब जाता मैंटूट गया सब ख्वाब जब हाथ उसने हिला दियाकैसे बताता मैं की क्यों जागा मैं कल रात भर सुबह को कमर ने भी मुझसे यही गिला कियाये ज़िन्दगी वैसे भी नासूर बन चुकी थी मेरी अबशुक्र है तुमने खात्मे को कोई तो वसिला दिया अच्छा खासा निकल आए थे जिंदगी में 'फ़राज़'उसने ख्वाब में आकर मरा हुआ इश्क़ जिला दिया -
ना हाथ जुगनू आए और चरागों ने जला दियाजिंदगी ने फरमाबरदारी का ऐसा सिला दियाथोड़ी देर और बुत बनकर रहता तो डूब जाता मैंटूट गया सब ख्वाब जब हाथ उसने हिला दियाकैसे बताता मैं की क्यों जागा मैं कल रात भर सुबह को कमर ने भी मुझसे यही गिला कियाये ज़िन्दगी वैसे भी नासूर बन चुकी थी मेरी अबशुक्र है तुमने खात्मे को कोई तो वसिला दिया अच्छा खासा निकल आए थे जिंदगी में 'फ़राज़'उसने ख्वाब में आकर मरा हुआ इश्क़ जिला दिया
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खंडहर इमारतों से खुदा का कहर देखते हैंबेबस लोग कुछ ऐसे अपना शहर देखते हैं -
खंडहर इमारतों से खुदा का कहर देखते हैंबेबस लोग कुछ ऐसे अपना शहर देखते हैं
मुझसे न मिलने के तुम्हारे कई बहाने याद आएकुछ इस तरह हमारे इश्क़ के अफसाने याद आएअभी तक ज़िंदा हूं तो हैरत में हूं मैं सुनलोजब इश्क़ मुझमें जिंदा था वो भी जमाने याद आएतुमने मुझे सिर्फ एक बार ही नाकाम देखा हैमुझे हर नाकामियों पर तुम्हारे ताने याद आएबात दीगर है कि अब वास्ता नहीं तुम्हे हमसेमगर तन्हा ही मुहब्बत के फसाने याद आएमुझे खुद पसंद नहीं मैं तो औरों से कैसी तलब'राज' पत्थरों से ठुकराए गए तो दीवाने याद आए -
मुझसे न मिलने के तुम्हारे कई बहाने याद आएकुछ इस तरह हमारे इश्क़ के अफसाने याद आएअभी तक ज़िंदा हूं तो हैरत में हूं मैं सुनलोजब इश्क़ मुझमें जिंदा था वो भी जमाने याद आएतुमने मुझे सिर्फ एक बार ही नाकाम देखा हैमुझे हर नाकामियों पर तुम्हारे ताने याद आएबात दीगर है कि अब वास्ता नहीं तुम्हे हमसेमगर तन्हा ही मुहब्बत के फसाने याद आएमुझे खुद पसंद नहीं मैं तो औरों से कैसी तलब'राज' पत्थरों से ठुकराए गए तो दीवाने याद आए
सियासतदां कहतें हैं दागदार कौन हैहकीमों के मुहल्ले में बीमार कौन हैकिसने शोर मचा रखा है हमारे घर के आगेखुदा के घर में शराब का तलबगार कौन हैएक दूजे पर तोहमत लगाते फिरते हैं लोगहुकूमत कहती है फिर बेरोजगार कौन हैपाई पाई लौटा दी जाती है खून की बूंदों सेसोचता हूं मेरा इस जहां में कर्जदार कौन हैकितनी खुशी में काट लेते हैं सब वक्त यहां'राज' तुम्हीं बताओ यहां बेकार कौन है -
सियासतदां कहतें हैं दागदार कौन हैहकीमों के मुहल्ले में बीमार कौन हैकिसने शोर मचा रखा है हमारे घर के आगेखुदा के घर में शराब का तलबगार कौन हैएक दूजे पर तोहमत लगाते फिरते हैं लोगहुकूमत कहती है फिर बेरोजगार कौन हैपाई पाई लौटा दी जाती है खून की बूंदों सेसोचता हूं मेरा इस जहां में कर्जदार कौन हैकितनी खुशी में काट लेते हैं सब वक्त यहां'राज' तुम्हीं बताओ यहां बेकार कौन है
मंदिर मस्जिद के नाम पर ललकार की खबर आती हैअब अखबारों में भी बेकार की खबर आती हैबेवजह आमदा हैं सब यहां एक दूसरे की बदनामियों परआवाम के सरोकार की नहीं सरकार की खबर आती हैआज भी जद्दोजहद में है ये तबका महिलाओं काजहां हर रोज़ नए नए बलात्कार की खबर आती हैरद्दी हो गया है अखबार पढ़ने से पहले ही फेंक देता हूंकिनारों का पता नहीं सिर्फ बीच मझधार की खबर आती है'राज' असल मुद्दे भुला दिए जाते हैं जरूरतमंदो के कहीं चापलूसी कहीं सास बहू के तकरार की खबर आती है -
मंदिर मस्जिद के नाम पर ललकार की खबर आती हैअब अखबारों में भी बेकार की खबर आती हैबेवजह आमदा हैं सब यहां एक दूसरे की बदनामियों परआवाम के सरोकार की नहीं सरकार की खबर आती हैआज भी जद्दोजहद में है ये तबका महिलाओं काजहां हर रोज़ नए नए बलात्कार की खबर आती हैरद्दी हो गया है अखबार पढ़ने से पहले ही फेंक देता हूंकिनारों का पता नहीं सिर्फ बीच मझधार की खबर आती है'राज' असल मुद्दे भुला दिए जाते हैं जरूरतमंदो के कहीं चापलूसी कहीं सास बहू के तकरार की खबर आती है
हर दिल में फरेब हर लब पर झूठ का पहरा होता हैदरख़्त पूछता है क्यों कुल्हाड़ी का वार गहरा होता हैहम बुज़दिल ये देख देख कर मर मर जाते हैंक्यों गला फाड़ते हैं जब सुनने वाला बहरा होता हैइक हांथ खोजने निकलते हैं उस जगह से हमजहां कोई साथ नहीं बस सहरा ही सहरा होता हैसुबह तुमसे शुरू होकर रात तुम तक बितता हैमैं भूल जाता हूं सब कुछ जब ज़िक्र तुम्हरा होता हैअब नहीं मिलेंगे ज़ख्म के निशान मेरी रूह परजान किया था वार वहां कांटों का बसेरा होता है -
हर दिल में फरेब हर लब पर झूठ का पहरा होता हैदरख़्त पूछता है क्यों कुल्हाड़ी का वार गहरा होता हैहम बुज़दिल ये देख देख कर मर मर जाते हैंक्यों गला फाड़ते हैं जब सुनने वाला बहरा होता हैइक हांथ खोजने निकलते हैं उस जगह से हमजहां कोई साथ नहीं बस सहरा ही सहरा होता हैसुबह तुमसे शुरू होकर रात तुम तक बितता हैमैं भूल जाता हूं सब कुछ जब ज़िक्र तुम्हरा होता हैअब नहीं मिलेंगे ज़ख्म के निशान मेरी रूह परजान किया था वार वहां कांटों का बसेरा होता है
जब से लगी लत ए शराब मैं कम में पीता हूंमैं भी आइने को दिए कसम में पीता हूंतुम्हारे छोड़ जाने का नहीं मलाल मुझकोमैं जिंदा हूं बस इसी गम में पीता हूंकाफ़िर हूं तो दोज़ख में सजा मिलेगी मुझकोये सोच पेट भरकर इसी जनम में पीता हूंसुना है हर दर्द भुला देती हुई जाम ए शराबतुम्हे भूल जाऊं बस इसी वहम में पीता हूंहर सुबह वादा करता हूं शाम को तोड़ देता हूं'राज' कभी तनहाई में कभी बजम में पीता हूं -
जब से लगी लत ए शराब मैं कम में पीता हूंमैं भी आइने को दिए कसम में पीता हूंतुम्हारे छोड़ जाने का नहीं मलाल मुझकोमैं जिंदा हूं बस इसी गम में पीता हूंकाफ़िर हूं तो दोज़ख में सजा मिलेगी मुझकोये सोच पेट भरकर इसी जनम में पीता हूंसुना है हर दर्द भुला देती हुई जाम ए शराबतुम्हे भूल जाऊं बस इसी वहम में पीता हूंहर सुबह वादा करता हूं शाम को तोड़ देता हूं'राज' कभी तनहाई में कभी बजम में पीता हूं
नज़रों से ओझल होते ही नजारे छुट जाते हैंदेर से आने वाले यूं ही किनारे छूट जाते हैंनिगाहों से छूता हूं जब फलक का चांदचांद मिलता नहीं और सितारे छूट जाते हैंज़िन्दगी के पंजों में जिनको नहीं मिलता आरामवो बदनसीब भी मौत के सहारे छूट जाते हैंजब जब मोती चुनता हूं समन्दर की गहराई मेंमोती नहीं होता और पत्थर सारे छूट जाते हैंहम ही नादान हैं जो हर रोज़ ढूंढ़ते हैं 'राज'घर नहीं मिलता और दयारे छूट जाते हैं -
नज़रों से ओझल होते ही नजारे छुट जाते हैंदेर से आने वाले यूं ही किनारे छूट जाते हैंनिगाहों से छूता हूं जब फलक का चांदचांद मिलता नहीं और सितारे छूट जाते हैंज़िन्दगी के पंजों में जिनको नहीं मिलता आरामवो बदनसीब भी मौत के सहारे छूट जाते हैंजब जब मोती चुनता हूं समन्दर की गहराई मेंमोती नहीं होता और पत्थर सारे छूट जाते हैंहम ही नादान हैं जो हर रोज़ ढूंढ़ते हैं 'राज'घर नहीं मिलता और दयारे छूट जाते हैं
किताबें छोड़ कर मैं सिर्फ चांद ताकता हूंचांद में अक्सर तुम्हारा अक्स झांकता हूंना तुम हो ना मिलने का आसरा तेराफिर क्यूं मैं बेवजह सारी रात जागता हूंमुझे पसंद है रात की काली परछाईसो मैं दिन के उजाले से भागता हूंकिताबों के पन्ने पलटते हुए गुजरती है रातया यूं कहूं मैं अपनी रात काटता हूंमैं मुसाफिर हूं दो पल का खून टिकता नहींजहां ठहर गया वहां की खाक छानता हूं -
किताबें छोड़ कर मैं सिर्फ चांद ताकता हूंचांद में अक्सर तुम्हारा अक्स झांकता हूंना तुम हो ना मिलने का आसरा तेराफिर क्यूं मैं बेवजह सारी रात जागता हूंमुझे पसंद है रात की काली परछाईसो मैं दिन के उजाले से भागता हूंकिताबों के पन्ने पलटते हुए गुजरती है रातया यूं कहूं मैं अपनी रात काटता हूंमैं मुसाफिर हूं दो पल का खून टिकता नहींजहां ठहर गया वहां की खाक छानता हूं
किसीकी आंखों में तो किसीकी बात में मिलते हैंरौशन होता है नज़ारा जहां जुगनू रात में मिलते हैंतुमने अब तक देखा ही नहीं नज़रों का ठहर जानावो जगह जहां हजारों गुल ए गुलाब खिलते हैंतुम्हारे पसीने की बूंदों से जलन होती है मुझेजो हर सुबह तुम्हारे लब ओ गाल पर फिसलते हैंचांद जब चहलकदमी करता है रात को फलक परलगता है मानो झील में हजारों महताब निकलते हैंतुम्हारा बेहिजाब निकलना ही कयामत है यहांहर गली हर मुहल्ले में लोग इज़्तिराब निकलते हैं -
किसीकी आंखों में तो किसीकी बात में मिलते हैंरौशन होता है नज़ारा जहां जुगनू रात में मिलते हैंतुमने अब तक देखा ही नहीं नज़रों का ठहर जानावो जगह जहां हजारों गुल ए गुलाब खिलते हैंतुम्हारे पसीने की बूंदों से जलन होती है मुझेजो हर सुबह तुम्हारे लब ओ गाल पर फिसलते हैंचांद जब चहलकदमी करता है रात को फलक परलगता है मानो झील में हजारों महताब निकलते हैंतुम्हारा बेहिजाब निकलना ही कयामत है यहांहर गली हर मुहल्ले में लोग इज़्तिराब निकलते हैं