Avinash Tripathi  
160 Followers · 205 Following

Science scholar BHU A HOME ,GORAKHPURI
शब्दों का सफ़र, अभिव्यक्ति ज़िन्दगी की
Joined 26 May 2017


Science scholar BHU A HOME ,GORAKHPURI
शब्दों का सफ़र, अभिव्यक्ति ज़िन्दगी की
Joined 26 May 2017
6 MAR AT 8:10

आशाओं के बुने महल में
कब हो पाती भोर कोई
मोह नेह के धागों का
होता कोई छोर नही
सब कह पाता जो मौन अगर
फिर होता मन का शोर नही

-


16 FEB AT 18:51

मैं कोई गीत लिखूं
उसका ढंग कहाँ से आए
चिड़िया जब उजली सुबह में
मधुर मधुर चहक कर गाएँ
मैं शब्दों को चुन लेता ऐसे
मधुकर जैसे पराग चुरायें
मेरा कुछ भी नही है लेखन
मुझसे प्यारी तितली लिखवाएं

-


16 FEB AT 18:39

मैं ख़ुद को भूल जाऊँ
जब पूरा चाँद फ़लक पर आए
मेरी पलकों में बंद चाँदनी
होंठों में है कैद तराने
मेरे हिस्से की बात बताने
जुगनू गाएँ गीत सुहाने
अंबर की सरल सादगी
जुगनू की मधुर रागिनी
तेज हवा का सुंदर झोंका
मुझको अपना हाल सुनाएँ

-


16 FEB AT 18:33

मुझकों कोई काम लगे
मैं ढ़लते तारे से पूछूँ
मेरे प्यार का नाम हो कोई
मैं निखरती शाम से पूछूँ
सूरज जब जमीं से मिलने
दबे पावँ क्षितिज पर आएँ
मेरे मन का एक हिस्सा
लाल समंदर रोज नहाये

-


2 FEB AT 8:23

पुष्पों के सहारे दीप जले
जल उठी नीली, पीली लौ
उपवन के माथे मुकुट लगा
लाल ग़ुलाब का गाल सजा
खिल उठी कचनार कली
नए गीत गुंजयमान है
प्रकृति प्रेम दीप्तिमान है
चाहत फैली गली गली
अधरों पर है मौन मगर
अंतर में है स्वर अनन्त
आगमन हो, ऋतुराज वसंत!

-


2 FEB AT 8:20

उबासी के दिन अब बिसरे
नव आशा के अंश है बिखरे
पुष्प खिल रहे गली, कूचें में
मधुकर के बढ़ गए है नख़रे
खेतों में लहलहाती तिलहन
बरबस छूती है सबका मन
कोलाहल भी अब है शांत
आगमन हो, ऋतुराज वसंत!

-


2 FEB AT 8:13

पाँच दिनों की बड़ी चाँदनी
ठंड शिशिर की हुई पुरानी
मधुबन में अब चमक धमक
धूप हो गयी औऱ चटक
प्रेम में ठहरे पतझड़ का अंत
आगमन हो ,ऋतुराज वंसत!

-


12 JAN AT 10:13

अपने बेग़ैरत शामों को लेकर
कब तक उदासी रह जाने दे
कभी मिलो जो तुम हमसे
फ़िर रैन चैन की लाए हम

अपने बेचैनी का बोझा लेकर
कब तक मीलो चलते जाए हम
कभी साथ जो चल लो तुम
फ़िर मंजिल खींच कर लाए हम

अपने बुने हुये अल्फाज़ो को
कब तक आवारा रहने दे
कभी मिलो जो तुम मुझमें
फ़िर तुमको ही लिखते जाए हम

-


12 JAN AT 10:07

अपने लिखे हुए गीतों का
कब तक भार उठाये हम
कभी मीलों जो तुम फुर्सत से
फिर हर एक हर्फ़ समझाए हम

अपनी बाँधी हुई ख़ामोशी को
कब तक ही सुलझाएं हम
मिलो कभी जो तुम तबियत से
फ़िर ख़ुद का हाल सुनाए हम

अपने बुने हुए एहसासों को
कब तक ओढ़े जाये हम
कभी मीलो जो तुम रंगत से
फ़िर रँगरेज बन जाए हम

-


5 JAN AT 21:57

ख़ैर मैं तो मुंतजिर था
मुझकों बख़ूबी से पता था
यह सदियों की रिवायतें है
जिनको अपने पास रखना पड़ा है
अदा करनी पड़ी है उनके लिये कीमतें
यह अकेली की मेरी नही कथा है
यह उस नदी की भी व्यथा है
जिसकों था एकाकी बहना
जब पड़ा उसको सागर से मिलना
छुटा उसका भी एक एहसास
जो अब तक उसके क़ैद में था
ज़िसके साज़ पर उसने लिखनी चाही थी दुनिया
वही परवाज़ भर कर आवाज़ उसको देता रहा है

-


Fetching Avinash Tripathi Quotes