कहते हैं हर कण में बसते भगवान है,
फिर भी कहीं कुम्भ और कहीं मना रहे रमदान हैं।
इस महामारी का हल,
किसी के लिए प्रार्थना तो किसी के लिए विज्ञान है।
पहला लहर था अब जो आया वो तूफ़ान है,
फिर भी राजा ने जमघट का कर दीया एलान है,
लालच को तौल गया लोगों के जान से भी ज़्यादा,
भला कैसे इतना स्वार्थी हो गया ये इंसान रे।
फिलहाल तो दवा ही उपचार है,
पर स्वास्थ व्यवस्था में करना अब सुधार है,
मन में उफन रहा ये विचार है।
क्या अगली बार के लिए अब हम तैयार है।
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