ये खूबसूरत चांद किसका है?
इस गंभीर मसले में न पड़ के
क्यों न सिर्फ इसकी खूबसूरती का आधिपत्य दिया जाए उन्हें,
जो इसकी खूबसूरती को छोड़,
देते है राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक तर्क
और पूछते हैं
ये खूबसूरत चांद किसका है?-
एजेंडे में फिट आया तो शहर शोर से भर गया
और ना आया तो इंसाफ फुसफुसा कर मर गया ।।
बंद करो अब ये तमाशा संबेदना और आक्रोश का
कुछ दिन की बात है हम सब भूल जाएंगे
दुबारा ऐसी खबर आएगी तब नया हैशटैग चलाएंगे
लगाएंगे नारा, जताएंगे दुख
कुछ लिख कर कुछ बोल कर खुद को तसल्ली पहुंचाएंगे
पर उस सोच का क्या?
जो पल रही है हमारे बीच
भीड़ में, दफ्तर में, पड़ोस में और खुद के घरों में
शहर की नालियां इंसाफ शब्द से भर गई है
इंसाफ की देवी कहीं और कुच कर गई है
तुम लगाते रहो #justicefor का नारा
मुझे तो इन मंजर की अब आदत सी पड़ गई है।।
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आंखों के नीचे नींद जमी है
चेहरे पे कोई फसाना है
एक दर्द हो तो सुनाऊं
यहां तो दर्द में सारा जमाना है-
सोचना
इतना सोचना की सोचना पड़े,
अरे! इतना भी क्या सोचना
सोचना
यहीं से शुरू करना
सोचना
यहीं पे खत्म करना
सोचना
अंत हैं, फिर प्रारंभ का सोचना
सोचना
प्रारंभ है, अब अंत का क्या सोचना?
सोचना
न अंत का न आरंभ का
न ही मध्य का
सोचना
बस इतना, क्या मिला इतना सोच के?
सोचना
सोचते सोचते मर जाना
सोचना
बस इतना की
सोचना
इतना क्या सोचना?-
एक दिन आएगा जब हमारा पाप गंगा भी धोने से इन्कार करेगी,
उस दिन हमारा अस्तित्व किसी के लिए मायने नहीं रखेगा।।
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दुनिया को समझने निकले थे
खुदही को खुद समझ न पाए
बदल लिया खुद को ज़माने के लिए
ज़माने का बदलाब समझ न पाए
बदलाब प्रकृति का नियम है
सब बदलता है
सजीव, निर्जीव
कौन सा बदलाब सार्थक था समझ न पाए
बदलाव सिर्फ पुराने अस्तित्व का खोना नहीं
खुद का अंश खोना है
कब खुद को खो दिया समझ न पाए
एक था जो बदलाब के साथ नहीं बदला
अस्तित्व का रूह
लेकिन अस्तित्व के रूह को समझ न पाए।
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आजु रउआ के खियाल आइल बा
बिन बोलवले बवाल आइल बा
जिन्दगी पड़ गइलि हिस्सा तोहार
हमरा बखरा जवाल आइल बा
हाल पुछली अनेर तोहरा से
हर जवाब में सवाल आइल बा
नेह मांगला पर डर लागेला
सोचबू कइसन कंगाल आइल बा-
ये बालियां, चूड़ियां मुझे अब खूबसूरत लगने लगी है
लेकिन दुविधा ये है
ये खूबसूरत खुद है?
या तेरे हाथों और जुल्फों से इनकी खूबसूरती है?
जो भी है बोहोत प्यारा है
पर मैं क्यों दुविधा में पड़ समय जाया करूं
मुझे बस अभी तुमसे बेइंतिहा मोहब्बत करने दो।।-
तुम गंगा की अविरल धारा
मैं किनारे सा मौन प्रिये
तुम यूंही नामवर होती जाओ
मैं तुम्हें देख रहूं गौण प्रिये।।-
कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो?
तुम मेरे उंगलियों के बीच से उठता हुआ धुंआ हो
तुम इस मेढक का संपूर्ण संसार वाला कुआं हो
तुम कड़कड़ाती ठंड में कुल्हड़ की सोंधी चाय हो
तुम अनजानी भीड़ में अपना सा कोई हाय हो
तुम इस आलसी के लिए स्फूर्ति वाला काम हो
तुम उदासीनता में मुस्कान लाने वाला नाम हो
तुम खाली सड़क पर मेरे बाइक की रफ्तार हो
तुम इस निरस जीवन में खुशी का समाचार हो
तुम चांदनी रातों में अकेलेपन का साथ हो
तुम मेले में खोए बच्चे की पीठ पर हाथ हो
तुम कई नाकामी बाद मिलने वाली जय हो
तुम मय के बाद आने वाली लय हो
तुम त्योहारों में आने वाली घर की यादें हो
तुम जिंदगी भर निभाने वाले वादे हो
तुम घर से दूर घर का खाना हो
तुम हर चीज टालने का बहाना हो
तुम अप्रदर्शित, अनंत वाला प्यार हो
तुम पहली न सही पर आखरी इजहार हो
तुम मेरे लिए क्या हो, बोहोत कुछ है बताने को
लेकिन कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो?-