गुम हो रही है पगडंडियां इस गांव की
लगता है आज एक और शहर तरक्की पर है।-
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ग़ालिब ना पूछ हमसे
हमारे ख्वाबों के दायरें
अब तो उस चांद पर भी अपने निशां है।
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थोड़ा लम्बा है सफ़र
पर तू घबराना नही
रास्ते कच्चे है मगर
तू डगमगाना नही
मंजिल दूर है तो दूर ही सही
उम्मीदें साथ है तेरे!
बाधाएं लाख हैं तो क्या
हौसलें पास हैं तेरे!
हवाएं बदलेंगी रुख अपना
तू थोड़ा इंतजार तो कर।
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लड़खड़ाएंगे ये कदम तभी तो चलना सीखेंगे
पहली दफा में ही गर पा ली मंजिले तो फिर सफ़र के मायने ही क्या!!-
लहरों से उलझ कर सीखेंगे हम जीने का हुनर
ये किनारों के सफर में वो बात कहां!!-
मुद्दतों बाद इस दिल पर दस्तक हुई
मुद्दतों बाद फिर आए उनके शहर में हम।-
सफलताएं हर दफां मिले जरूरी तो नहीं..
कुछ नाकामियों का भी मजा लीजिए हुजूर।-
कभी दस्तक तो दे दहलीज पर ऐ ग़ालिब..
अंदाज़ खुद ही हाल-ए-बयां कर देगा-
सफ़र में मुश्किलें तो होंगी
तू गर साथ चल सके तो मेरे साथ चल..
राहें कहीं साथ ना छोड़ दे मेरा
मंजिले कही रूठ ना जाए मुझसे
खो जाए ना कही रस्तों में
ये तन्हा सफ़र मेरा..
तू गर साथ होगा मेरे
तो बेफिक्र चल सकूंगा..मैं हर नए रास्तों पर
हां मुश्किलें तो होंगी
और रस्ते भी कहां आसां होंगे
पर गर साथ होगा तू मेरे!!
तो पा लेंगे मंजिलों को हम हर सफ़र में मिल कर।
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कभी होंगे फ़ुरसत से रूबरू तुझसे..
अभी अंजान हू शहर मैं तेरी गलियों से।-