करीब आ, या तो जुदा कर.....
यूँ ना बीच में हवा कर......
मोहब्बत कर, नफ़रत कर, जो भी कर
बस बेतहाशा भरा हुआ कर.....
मैं पत्थर हूँ, ठोकरों तक वजूद मेरा
इक दफ़ा छूकर मुझे, खुदा कर.....
शुरू सुबह तुझसे, खत्म शाम भी तुझपे
गिरफ़्त में हूँ तेरी मैं, मुझे रिहा कर.....
नजदीकियों ने तो बस दूरियाँ दी हैं
क़ुर्बत के लिए अब फ़ासला कर....
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मेरी रचनाएँ पढ़ लेना
मैं अपने शब्दों में बैठता हूं।
म... read more
इक उँचाई तक चढ़कर, सूरज भी उतर जाता है...!!
अच्छा-बुरा, वक्त कैसा भी हो, सब गुजर जाता है...!!-
सैंकड़ों शिकवे, हजारों गिलें हैं....
रूह के दरमियाँ मीलों के फासले हैं....-
गैरों की बातों को हँस के लिया
पर अपनो के सवालों से मारा गया हूँ...
अंधेरों ने तो बेहद सम्भाले रख्खा,
मैं अक्सर उजालों से मारा गया हूँ...-
कितना आसान सफ़र होता...!!
अगर तू हमसफ़र होता...!!
मेरे मुकद्दर के सितारों की
मुझ पर कोई नज़र नहीं...
मेरी तन्हा शामों की
जैसे अब कोई सहर नहीं...
तू होता तो भी ग़म होते
बस इतना सा अन्तर होता...!!
हँसते हुए मैं लड़ता इनसे
हाथों में तेरा हाथ अगर होता...!!
कितना आसान सफ़र होता...!!
अगर तू हमसफ़र होता...!!
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जिन्दा हैं बस गिनने को लाशे
हर नज़र नज़र में बस खून मिले....
हर साँस साँस दहशत में उलझी
मर जाऊँ तो शायद सुकून मिले.....-
शहर बेचैन है, गाँव मजबूर है...
हर रिश्ता पास होते हुए भी दूर है....
हर शख़्स सहमा, हर हाथ खाली..
उठती हुई हर नज़र है सवाली..
भगवन अब तुम्हारे भरोसे सब आया..
हर पल मँडराता है जैसे मौत का साया..
मौत से भी ज्यादा डर,
मौत का क्रूर है....
शहर बेचैन है, गाँव मजबूर है....
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जिन्दगी एहतियातन समेट ली हमनें
इसके अपने अजीब मसले हैं...!!
नफ़रतों के कारोबार में कच्चा हूँ जरा,
मोहब्बतों में हारने के मेरे लम्बे सिलसिले हैं...!!-
तुझे पाने की चाहत जाती रही अब
मोहब्बतों की भी उम्र ढ़लती है...!!-
भीड़ में अगर कहीं तुम्हें मुस्कुराता दिखूं
गौर से देखना ज़रा , मैं तन्हा मिलूंगा .............-