Avinash Sharma   (AVNEESH)
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Joined 23 December 2017


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Joined 23 December 2017
30 MAR 2024 AT 23:24

आंखो में रात सा मंज़र है..।।
घुप सघन अंधेरा अंदर है..।।

किसकी खामोशी चीख रही है,
ये किसके दिल पर पत्थर है?

वो सब शक्लें पहचानी सी है,
जिन भी हाथों में खंजर है..।।

वो देखो एक तारा टूटा है,
मांग लो मुझको, तुमपर है..।।

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4 OCT 2023 AT 22:25

कई अपनों से बेहतर शराब निकली
मौत तक रिश्ता निभाती रही..

मैं बूंद-बूंद इसको पीता रहा, और
आहिस्ता-आहिस्ता ये मुझको खाती रही..

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25 SEP 2023 AT 8:23

इक नए सफ़र में..
किसी नए शहर में..

छोड़ के पीछे किस्से तमाम..
जीवन चलते रहने का नाम..

घर मोहल्ला छूटा , वो खिड़की छूटी...
मृगनैनी, अल्हड़ सी वो लड़की छूटी...

साथ रहे बस कुछ इल्ज़ाम..
जीवन चलते रहने का नाम..

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2 OCT 2022 AT 9:23

दर्द इतना की अब सहा नहीं जाता..
जुबाँ ऐसी की कुछ कहा नहीं जाता..

जला दिए तेरे, खत मैंने सारे,
मगर राख से तेरा चेहरा नहीं जाता..

तू हो नहीं सका हमसफ़र मेरा,
मुझसे किसी और का हुआ नहीं जाता..

साफ़-गोई मेरी ज़माने में जीने नहीं देगी,
और खामोश मुझसे रहा नहीं जाता..

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6 MAR 2022 AT 16:53

मैं दर्दों का शायर हूँ,
खुशियों से मेरा नाता क्या....
अंधेरों में है कटी ज़िन्दगी,
मैं तन्हाई से घबराता क्या....

एक जैसे सब चेहरे हैं,
अपना क्या पराया कौन..;
बिखरे ख्वाब हमारे जब भी,
हाथ थामने आया कौन..;

इश्क़ राह में ग़म ही ग़म हैं,
सिवा दर्द के, मैं पाता क्या....
मैं दर्दों का शायर हूँ,
खुशियों से मेरा नाता क्या....
— % &

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6 MAR 2022 AT 8:33

ला-जवाब अदाकार मेरा हमसफ़र निकला...
मोम का दिखा के खुद को, पत्थर निकला...

कैसे, किसे दिखाएं ज़ख्म-ए-दिल ,
अपनों के ही हाथों में जब खंज़र निकला... — % &

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22 FEB 2022 AT 11:49

हड्डियों और मांस के पुतले सा,
बस बचा जिस्म मेरा,
रूह को तो तू,
साथ अपने ले गया......
हँसूँ तो अदाकारी सी लगती है,
उलझने बस छोड़कर सब रंग,
जज़्बात सपने ले गया.......

लड़खड़ाते कदम, सैलाब आँखें,
पर आप ही मैं आप संभला.....;
मालूम है तू बेवफा नहीं है,
मगर जिस तरह से तू गया है,
कोई यूँ जाता है क्या भला......? — % &

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18 FEB 2022 AT 9:01


रिश्तों में अक्सर 2 तरह के लोग होते है
(1) पहले जो, आपसे दूर इसलिए नहीं जाते,
क्योंकि आपके बगैर वह खुश नहीं रह पाते

(2) दूसरे, जो सिर्फ इसलिए नहीं जाते
क्योंकि उनके बगैर आप खुश नहीं रह पाते
न सोचो तो कुछ भी अंतर नहीं है, गौर करो तो एक गहरी खाईं है इन दो तरह के लोगों के दरमियान
कोशिश यही होनी चाहिए की दूसरे तरह के लोगों का हाथ कस के थाम लिया जाये..। — % &

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17 FEB 2022 AT 15:11

निगाह उठे तो सुबह हो, झुके तो शाम हो जाये.....
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो क़त्ल-ए-आम हो जाये...
जरुरत ही नहीं तुझको मेरी बाँहों में आने की,
जो ख्वाबों में ही आ जाओ तो अपना काम हो जाये.....
— % &

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14 FEB 2022 AT 8:39

चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं
तोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
दस्त-अफ़्शाँ चलो मस्त ओ रक़्साँ चलो

ख़ाक-बर-सर चलो ख़ूँ-ब-दामाँ चलो
राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो

हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी संग-ए-दुश्नाम भी

सुब्ह-ए-नाशाद भी रोज़-ए-नाकाम भी
उन का दम-साज़ अपने सिवा कौन है

शहर-ए-जानाँ में अब बा-सफ़ा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायाँ रहा कौन है

रख़्त-ए-दिल बाँध लो दिल-फ़िगारो चलो
फिर हमीं क़त्ल हो आएँ यारो चलो — % &

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