बिक जाए सब मग़र ज़मीर ना बिके
म्यान बिके मग़र शमशीर ना बिके
बिक जाए घर-बार मग़र ईमान सलामत रखना तुम
प्यादे बिके तो बिके मग़र मसनद-ए-वज़ीर ना बिके
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Avinash Rauniyar
(अविनाश रौनियार)
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मुक्तक लेखक
Joined 6 February 2018
15 FEB 2022 AT 21:15
9 FEB 2022 AT 18:46
ग़ैरजरूरी हर काम को नजरअंदाज किया करो
प्यार से चलती है दुनिया..फ़क़त प्यार किया करो-
6 FEB 2022 AT 8:33
यह ज़रूरी नहीं कि आप जिस बात के साक्षी ना हों वह बात सत्य ही ना हो
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28 JAN 2022 AT 19:19
यह तो शुक्र है कि रोटी के लिए रुपये का लेन-देन होता है
कहीं किताबों के लेन-देन से रोटियां मिलती तो वो रोटियां बहुत महँगी पड़ती-
27 JAN 2022 AT 11:29
दर्द में अपने हम मुस्कुराए बेहिसाब
ख़ुशी में भी अहर्निश बेशुमार रोये हैं
हम ने लड़ी ज़िंदगी-मौत की लड़ाइयाँ
अपनी लाश अपने काँधों पर ढोये हैं-
26 JAN 2022 AT 23:42
किताबों के पीछे शराब छुपा कर रखते हैं
आदत हम कितनी ख़राब छुपा कर रखते हैं
उनके साथ ज़ीने का अरमान न कभी पूरा होगा
इसलिए दिल में ही हम ये ख़्वाब छुपा कर रखते हैं-
14 JAN 2022 AT 9:06
वो कहती है कि मुझको मेरी क़ीमत पता नहीं है
मैं वहाँ भी माँगता हूँ माफ़ी जहाँ मेरी ख़ता नहीं है-
14 JAN 2022 AT 8:47
इश्क़ था कि नहीं मैंने ये सवाल नहीं पूछा
मुझे बस वो देखती रही..मेरा हाल नहीं पूछा-