Avinash Pathak  
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Joined 29 April 2020


Joined 29 April 2020
15 JAN 2022 AT 0:57

चाहत है दिलों में,दोनों जानते है
अनजान वो भी नही और मैं भी नही
बोलने की पहल करेगा कौन
सुनता वो भी नही और मैं भी नही
रुख़-ए-महताब है दोनों मगर
देखता वो भी नही और मैं भी नही
रातें लंबी कर देती है चिरागो की रोशनी
बुझाता वो भी नही और मैं भी नही
अंगड़ाई या बदलती रहेती रात भर
सोता वो भी और मैं भी नही
सिलसिला ये बेरुखी का इस कदर है
मानता वो भी नही मनाता मैं भी नही
दिल के तार पे सरगम लिखी है पर
गाता वो भी नही और मैं भी नही
जिद पे ही अड़े रहेंगे दोनों
मिलेगा वो भी नही, बिछडूंगा मैं भी नही

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9 JAN 2022 AT 23:29

धूप खुल के कुछ नही कहती
रात की रफ्तार भी कम होती है
सर्द मौसम की ये दिक्कत है
याद भी जमकर बैठ जाती है

कम्बल ओढ़ के लेट जाते है
नींद तो अपनी मर्जी से आती है
सोच में रहती है बाते उसकी
अभी सुनी हुई ताज़ी लगती है

जैसे ही लगती है आंखे मेरी
याद अंगड़ाई लेने लगती है
ख्वाब फिर सच्चे लगते है
हकीकत फरेब लगने लगती है

लगता है धूप निकलके भोर की
कोहरे को चीरने लगती है
जैसे ही चेहरा दिखे उसका तो
वही आके ठहरने लगती है

ख़ाब सुनहरा टूट जाता है
ठंड सच बयाँ करने लगती है
सो जाओ आज भी तुम तनहा
कहाँ फिर नींद मुझे लगती है

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14 DEC 2021 AT 7:31

इंतेजार में हूँ....की
एक सुबह इतनी सुहानी हो जाए..
लेके हाथों में चाय तू मेरे सामने आ जाए
ठंडी लहरे छुए तुम्हे और दिवानी हो जाए
छू के देखु तुझे और ये सपना हकीकत हो जाए
इंतेजार में हूँ...की
इस बार ठंड कुछ अलग मेहसूस होंगी
थामी जो मेरी बाहों ने तेरी बाहें होंगी
इस कदर लिपटे तू मुझे
दोनों की साँसे एक ही लय में होंगी
इंतेजार में हूँ...की
ये इंतेजार जल्द ही खत्म हो जाए
इस मौसम में हम दोनों साथ हो जाए
कम्बल, चादर, स्वेटर, मफलर छोड़
बस तू ही मेरे ठंड़ का हल हो जाए

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23 NOV 2021 AT 0:01

रहने दो छोड़ो भूल जाओ, अब
तुम्हारे बिन जीने की आदत हो गई है
मत जलाओ ये चाहत के दिए
अब तो अंधेरे से मुहब्बत हो गई है
नही जाना कहीं मुझे भीड़ मे
अकेले पन की आदत हो गई है
याद ही नही करता मैं कुछ भी
मुझे अब भूलने की आदत हो गई है
थकना अब मंजूर नही इन पाँवो को
बस अब चलने की आदत हो गई है
नही सुनता दिल ये बाते किसीकी
और न ही सुनाने की आदत रही है
तुम्हारे बिन रातें भी सुकून देती है
अब तो सोने की भी आदत हो गई है
बस अब लौट के न आना वापस तुम
तुम्हारे बिन जीने की आदत हो गई है

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19 OCT 2021 AT 21:08

दोनों ही खूबसूरत
एक चाँद वहाँ आसमान में
एक चाँद मेरा मेरे सपनों के आसमान में
एक ख़्वाहिश थी मेरी
जो पूरी हुई आज
दोनों एक साथ देखे मैंने अपने जहॉं में

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16 AUG 2021 AT 22:18

सुली चढ़ी आज मानवता वहाँ
बेघर, बेबस, हताश भूखे लोग
बच्चे, बूढ़े, औरतें सब शामिल वहाँ
दुनियाँ के लिए तमाशा बने लोग
मज़हबी ताकतों का शिकार होते लोग
कट्टरता और धर्मांध लोगो द्वारा
पशुता और हीनता सहते लोग
माफ़ नही करेगा ख़ुदा उनको
दर बदर ये बद्दुआ देते लोग
चीख़ते-चिल्लाते जान की भीख मांगते लोग
सिख ले और तय करे दुनियाँ आज
हमे क्या जरूरी है, धर्म या लोग
उठो लड़ो इन जाहिलों से
क्यों है इतने कमजोर लोग
खुदकी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी
थकान दूर कर, पैरो पे खड़े हो जाओ
मरने से पहले खंदा नही देते लोग..

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8 AUG 2021 AT 21:29

असताना तू समोरी माझ्या
भान हरपुन जाते माझे
गहाळ मी झालोय तुझ्यात
जणु तू आहे व्यसनच माझे

कासावीस जीव करतो माझा
जर नाही दिसले रूप तुझे
ताबा हरवून बसलोय मी
जणु तू आहे व्यसनच माझे

नाद लागला आहे तुझा
म्हणतात सगे सोबती माझे
गुरफटून असा गेलोय तुझ्यात
जणु तू आहे व्यसनच माझे

का करु नये मी मोह तुझा
मनमोहकच आहे रूप तुझे
सूटता ही सुटनार नाही असे
जणु तू आहे व्यसनच माझे

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13 JUL 2021 AT 11:28

जोश जिनके ज़वानी का कभी कम नही हुआ
पी गए मैखाने फिर भी नशा ज्यादा नही हुआ
लिखता हूं मैं उन जिन्दादिलों के लिए शायरी
बाक़ी के लिए अच्छी है कुरान और ज्ञानेश्वरी

सपनें देख रहा हूँ के मुझे नींद में रहने दो
हकीकत अब मुझसे बर्दाश्त नही होती
झुलसी है मेरी रूह इन यादों की बारिशों में
बह गए मकान,पर किसीसे शिकायत नही होती

चुभता है, हर तीर-ए-नजर उसको
आंख मिलाने की ज़ुरूरत नही होती
देखता है शक की नजरों से जमाना, लेकिन
उसे देखे बगैर जीने की आदत नही होती

खामोश हूँ, लेकिन अंदर एक शोर है
बातें किसीको सुनाने की चाहत नही होती
पूछता तो हर कोई है हाल आज कल
लेकिन किसको किसकी कदर नही होती

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22 JUN 2021 AT 23:39

शब्द झाले कमी, डोळे बोलू लागले
शब्दांविना देखील सारेच कळू लागले
आहे जादू तुझ्या मिठित अशी,जणु
सखे विसावून तेथे भान हरवू लागले

काजवे रात्रीचे आता,जमने बंद झाले
जवळ मला तुझ्या पहुण,तेही जळु लागले
सौंदर्य तुझे चंद्र - ता-यात नाहलेले
रात्रीचेही आता वैभव वाढवू लागले
केस तुझे बांधून ठेव थोड़े
आता कोठे हे वादळ शमू लागले
बहुदा नसेल पाहिले रूप ऐसे
म्हणूनच मेघहि डोकावू लागले

जिकीर माझा होता तुझ्या कडून
मला हुंदके जाणवु लागले
घायाळ इतका झालो मी प्रेमात तुझ्या
शत्रुही माझी, फिकिर करु लागले
नको अशी साद देउस मला तू
दूर राहणे मला कठिन होउ लागले

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20 JUN 2021 AT 10:08

एक पेड़ है नीम का घर मे सबके
छाव उसकी बड़ी शीतल है
स्वाद उसका कड़वा जरूर है
पर हर रोग पे गुणकारी है

दुनियादारी से दूर व्यवहार उसका
रखना नही बस देना सरल है
हिसाब कभी पूछा नही उसने
सब कुछ तो उसका परिवार है

सख्त खाल का जानवर है वो
हर वार सहज सह जाता है
दर्द दिखता नही उसका कभी
आंसू भी आंखों में छिप जाता है

गले लगा लेना गर हो सके उसको
उसे अपनेपण का एहसास हो जाता है
भाग दौड़ करता है जिंदगी भर
इंसान है,आख़िर वो भी थक जाता है

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