Avinash Pandey  
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Joined 23 May 2017


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Joined 23 May 2017
16 JAN 2021 AT 0:24

आँखों के इस पार पूरी दुनिया खड़ी है
आँखों के उस पार कोई पहुँचे तो बात बने...

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2 DEC 2020 AT 18:12

इन शोर में गूंज रहे सन्नाटों से डर सा लगता है
अपने ही जिस्म में भी मेरी रूह को बेघर सा लगता है

अपनों के अपने लोगों में ही नाम शुमार नहीं मेरा
फिर भी शिकायत करना निरादर सा लगता है

हवाओं में घुल कर ही उसमें समा जाऊँ क्या
उस चाहत की चाह में ये दिल दर-दर भटकता है...

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25 SEP 2020 AT 23:35

इन आँखों से ज़्यादा महफूज़ कोई राज़ क्या रखेगा
मैं रो भी लेता हूँ और इनसे अश्क बहते भी नहीं...

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22 SEP 2019 AT 0:18

जिस-जिस ने जितना तोड़ा मुझे
हर एक का नाम अपने टुकड़ों पर लिखा है,
कैसे करीब आए, अपना बनाए और फिर बिखेर गये
ये सब कुछ पूरी दुनिया ने देखा है।

दर-दर भटका, लड़खडाया, संभला
फिर किसी की गोद में बिलक कर रोने लगा,
कहाँ से आया, क्या खोया, क्या पाया
इसका एहसास उन्हें भी होने लगा।

उन्होंने कहा, कि देखो दामन भीग गया मेरा तुमहारे आँसुओं से
कुछ तो हक़ मेरा भी तुम पर बनता है,
सारे अपने तुम्हें तोड़ गये
एक टुकड़ा तो मेरे नाम का भी बनता है...

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12 JUL 2019 AT 23:37

अपने अपनों से अपनापन जताते-जताते दूर हो जाते हैं
और हम अपनों के सामने अपने आप मजबूर होते जाते हैं
क्या खोया, क्या पाया अब कुछ फर्क पता नहीं चलता
हर किसी में अपना ढूँढ़ा पर पता नहीं क्यों कोई अपना नहीं मिलता

पहले तो बस रातें लम्बी लगती थी
अब दिन भी लम्बे लगने लगे हैं
ज़िंदगी एक अरसे से ऐसे बीती है
कि गम ही खुशियों जैसे लगने लगे हैं

ख्वाहिशों के अंधेरों के साथ हमेशा फरियाद मिलेगी
कुछ चीज़ें बरबाद थी और हमेशा बरबाद ही मिलेंगी...

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19 JUN 2019 AT 10:29

बादलों में चाँद की तरह खुशियाँ भी कभी दिखती तो कभी घुम हो जाती हैं
ज़िंदगी भी खुशबू की तरह महकती हुई गुज़र जाती है

अक्सर ख्वाहिशों को मैं किसी चौराहे पर छोड़ आता हूँ
पीछा न कर सके मेरा इसलिए उनका चहरा दूसरी ओर मोड़ आता हूँ
तन्हाईयों की मशाल जला कर लड़खड़ाते हुए
मैं शोर की ओर रोज़ थोड़ा बढ़ जाता हूँ
तजुर्बों से पल-पल पिघल कर
एक नए आकार में हर रोज़ ढ़ल जाता हूँ

कभी लड़ा, कभी गिरा, कभी गिर कर बिखर गया
और उठने की सारी कोशिशें अब बेज़ोर नज़र आती हैं
ठहर-ठहर कर आगे बढ़ा पर फिर भी बढ़ न सका
ज़िंदगी भी अब थोड़ी कमज़ोर नज़र आती है

हवाएँ सीने से लिपट कर अक्सर घाव भर देती हैं
और जुगनुओं की रौशनी भी ज़िंदगी में थोड़ा उजाला कर देती है
सितारों को देखकर मैं अब भी मुसकुरा देता हूँ
रात के आगे मैं दिन को अब भी ठुकरा देता हूँ...

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30 MAY 2019 AT 15:59

सारे ज़ख्मों को अपना ढ़ाल बना दिया है
देखो मैंने अपनी ज़िंदगी को कमाल बना दिया है

जो मेरे होने पर सवाल उठाते थे कभी
आज उनके होने को सवाल बना दिया है...

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27 APR 2019 AT 16:30

ज़िंदगी में हर चीज़ बराबरी में बाँटने का हमारा वादा था
जैसे भूलने का उसका और याद करने का मेरा आधा था...

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24 APR 2019 AT 19:20

भले ही चारों तरफ़ लोगों का मेला न रहे
दो-चार ही हों अपने, बस कोई अकेला न रहे...

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14 MAR 2019 AT 16:41

आज-कल चश्मे के बिना रहता हूँ,
चश्मे से ज़िंदगी अब ज़्यादा धुंधली नज़र आती है...

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