प्रेम और आशक्ति
प्रेम और आशक्ति एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत है।
प्रेम सम्पूर्णता का बोध है,आशक्ति अपूर्णता का भय,
प्रेम स्वकक्षन्द है, आशक्ति पराधीन है,
प्रेम निर्मल है,आशक्ति मलीन है,
प्रेम निच्छल है,आशक्ति छल(धोखा) है,
प्रेम निस्वार्थ है,आशक्ति स्वार्थ से पोषित है,
प्रेम निर्भय है, आशक्ति भयभीत है,
प्रेम निष्काम है, आशक्ति कामना है,
प्रेम चेतना का शिखर है, आशक्ति भौतिकता का चरम है,
प्रेम परमानंद की अनुभूति है,आशक्ति दुःखों का सागर है,
प्रेम कृष्ण की बासुरी का धुन है,आशक्ति रावण का अहंकार है,
प्रेम जीवन का आधार है,आशक्ति मृत्यु का द्वार है।
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