धड़कनें कुछ कहती हैं, चुपचाप हर रात,
तेरे नाम से जुड़ी है इनकी हर बात।
ना तू पास, ना कोई आवाज़ है,
फिर भी तुझसे ही तो ये हर सांस है।-
उधार की ज़िंदगी है साहब,
मगर जिए जा रहे हैं फ़ख्र से।
हर ग़म को चाय में घोलकर,
हर शाम मुस्कुरा रहे हैं सख़्त से।
कभी उम्मीदें गिरवी रखीं,
कभी ख्वाबों का सौदा किया,
पर दिल तो देखिए जनाब —
अब भी इश्क़ में दीवाना है,
अब भी वक़्त से बेगाना है।
किराए की हँसी सही,
पर अश्क अपने हैं,
हर ठोकर पे जो उठे,
वो नक़्श अपने हैं।
किसी की ख्वाहिशों में खोए तो क्या,
अपनी रूह तो आज़ाद है,
ये उधार की ज़िंदगी ही सही —
पर इसमें भी एक कमाल की बात है।
हमने शिकायते छोड़ दी हैं,
अब तो हर साँस पे शुक्र है,
कि चल रही है…
चाहे किसी और की कहानी में ही सही।-
हर सुबह उठते हैं
किसी और की घड़ी में,
हर साँस चलती है
किसी और की मर्ज़ी से।
चेहरे पर हँसी है
जो किराए की लगती है,
और आँखों में नींद नहीं —
बस बोझ है, दिन का हिसाब।
कभी माँ-बाप की उम्मीद,
कभी समाज की सज़ा,
अपने लिए जीने का वक़्त
किसी को कहाँ मिला भला?
हमने भी बिछा दिया जीवन
दूसरों के रास्तों पर,
अपनी राहें उधार रख दीं —
उन सपनों के नाम
जो कभी हमारे थे ही नहीं।
अब तो बस चल रहे हैं —
एक मशीन की तरह,
जिसका दिल धड़कता है
पर अपनी धड़कनों में नहीं।-
रिश्ते
जुड़ते धीरे
कभी हँसी, कभी आँसू
बिन कहे भी सब कह जाते
फिर भी अक्सर टूट ही जाते हैं।
-
कुछ ना बोलकर भी
तू सब कह गया,
तेरी आँखों ने वो सच दिखा दिया
जो लफ़्ज़ कभी दिखा नहीं सके।
तेरे हाथों की काँपती उंगलियाँ,
तेरे होंठों की बेमन मुस्कान —
सब गवाही दे गए
उस दर्द की, जिसे तूने छुपा रखा था।
लोग कहते हैं —
इश्क़ में इज़हार ज़रूरी है,
पर मैंने तुझमें खामोशी से
मोहब्बत को साँस लेते देखा है।
कुछ ना बोलकर भी
हम दोनों सुनते रहे —
तू मेरी चुप्पी समझ गया,
मैं तेरे आंसू पढ़ती रही।
और शायद...
यही सबसे सच्चा इश्क़ था —
जिसमें लफ़्ज़ नहीं थे,
फिर भी हर बात मुकम्मल थी।-
कभी सच की ज़ुबान थी,
अब ख़ामोशी ओढ़ ली है।
वक़्त की अदालत में
हर हक़ीक़त ने समझदारी से हार मान ली है।
मसल्लहत के सौदे में,
ज़मीर सबसे सस्ता बिका —
इक चुप ने रिश्ते बचाए,
और सच बोलने वाले, अकेले रह गए।
अब तो चेहरों पे मुस्कान भी
नक़ाब सी लगती है,
क्योंकि असली जज़्बात
या तो चुप हैं… या ज़िंदा नहीं।
मैंने भी बहुत बार
ख़ुद को झूठा साबित किया —
बस इसलिए,
कि किसी का सच ना टूटे।
कितनी अजीब बात है,
हम दर्द पीते हैं,
और लोग सोचते हैं —
हम समझदार हो गए हैं।-
ज़िन्दगी से कह दिया —
अब और कुछ मत माँग,
तेरे हर इम्तहान में
मैंने खुद को ही खोया है।
ख़ुशियाँ उधार लीं,
आंसू तूने ब्याज पर दिए,
और जो बचा —
वो मैं नहीं रहा।
हर सुबह जला है सूरज की तरह,
पर रौशनी नहीं दे पाया,
हर रात टूटा हूँ तारों सा,
पर किसी की दुआ ना बन सका।
तेरे नाम पर जो सब सहा,
वो इबादत नहीं थी —
एक मजबूरी थी,
जिसे तूने "सब्र" का नाम दे दिया।
अब अगर कोई ख्वाब आए,
तो दरवाज़ा बंद मिलेगा…
ज़िन्दगी से कह दिया —
अब तेरा कोई इंतज़ार नहीं।-
कहते हैं — दर्द सहने की कुव्वत है मुझमें,
पर कोई नहीं जानता
मैं हर दिन थोड़ा-थोड़ा मरता हूँ।
चेहरे पर हँसी,
जैसे चाकू की धार पे रखी चमक —
खूबसूरत भी… ख़तरनाक भी।
मैंने आँसुओं को सिखाया है
कैसे मुस्कुराना होता है भीड़ में,
और ज़ख़्मों को —
कैसे बिना चीखे जीना आता है।
कभी-कभी सोचता हूँ,
ये सहने की कुव्वत
वरदान है या अभिशाप?
क्यूँ हर बार मुझे ही
दी जाती है ज़हर पीने की चाय,
और उम्मीद की मिठास बाँट दी जाती है
उनके हिस्से, जो रो भी नहीं पाए?
क्या सच में ताक़तवर होना —
मतलब है चुप रहना,
सड़ते रहना भीतर…
और फिर भी कहना — "मैं ठीक हूँ"?-
smile with lips, not the soul beneath,
My words wear masks, hiding the rot beneath.
No one sees the fire behind this grin,
No one hears the storm sealed within.
I walk, I nod, I speak when needed,
But my truth lies where ink has bled and pleaded.
Pages don’t judge, nor do they leave,
So I bury myself where I can still breathe.
These poems—my coffins, lined in rhyme,
Each line a cut, each stanza—time.
I die a little in every verse,
Spilling wounds the world can't nurse.
You ask, “Are you okay?” I nod like a pro,
But inside, there’s frost, and far below
The shattered boy, who once had dreams,
Now only bleeds—on paper he screams.-