Avinash Jain   (Avinash)
31 Followers · 20 Following

Joined 10 May 2019


Joined 10 May 2019
4 OCT 2023 AT 12:58

तज खेत, माटी, गांव, घर, परिवार सब,
जाता नगर देखो श्रमक, बन तात-नव।
तपती है माटी आग में, तब ईंट आती भाड़ से।
और कोठियां बनतीं ऊँची है श्रमक के हाड़ से।

-


24 JUL 2022 AT 14:04

हुनर-ए-मक्कारी पे इस कदर हासिल है उबूर,
मक्कारी करने में मक्कारी किये जाता हूँ मैं।

-


12 JUL 2022 AT 19:33

अश्रु-स्वेद-रक्त की आहुति जब तुम्हारी है,
क्यों तुम्हारा ही नहीं साफल्य का हो मापदण्ड।

-


18 APR 2022 AT 18:03

रंग मैंने हैं उबाले, आँच पर उम्मीद की,
अब्र रंगीं हो फ़लक पे, रंगीन और बरसात हो।
संवेदना की एक चुटकी, रोज़ लें हम सुब्हो-शाम,
शोर में भी शून्य हो, मौन में और बात हो।

-


21 MAR 2022 AT 23:21

गिन के दो ही तो हैं तौर-ए-ज़िंदगी, मर्ज़ी जो करता चल,
लम्हा लम्हा जीता चल, लम्हा लम्हा मरता चल।

-


12 MAR 2022 AT 22:19

बड़ी हैरतंगेज़ है ये अंजुमन, ये कैफ़ियत-ए-इंसां भी,
हम फ़िक्र-ज़दा हैं, इस फ़िक्र में कि बेफ़िक्र कैसे रहें।

-


22 DEC 2021 AT 1:13

नींद-ए-चैन का इस्तबाल कुछ यूँ कर लिया हमने,
सेज-ए-रात पे टाँक के चाँद कुछ तारे छिटका दिऐ।

-


19 DEC 2021 AT 12:45


यूँ बातें लंबी करने से, रातें ये लंबी-
छोटी हो जातीं।

धंसते गाल, ऐंठती अंतड़ियाँ, उसकी रोटी, उसकी भूख!
सदैव होती ही आयीं हैं कविताएं मेरी,

अब कुछ यूँ हो जाता, ये कविता उसकी-
रोटी हो जाती।

-


6 NOV 2021 AT 15:03

रख लो गुल, ख़ार-ज़ार हमें दो, हम फिर गुलज़ार बनाऐंगे।
आज तपा के सुर अपने, कल राग मल्हार सुनाऐंगे।
तोड़ दो पर, सितम कर लो, मंज़िल टांग उफ़ुक़ पे दो,
हमारा भी वक़्त है! ज़िद करेंगें, और उतार लाऐंगे।

-


6 AUG 2021 AT 13:04

अख़बार के आख़िर सफ़्हे का गुमनाम इश्तिहार-सा,
मैं गर्द में लिपटी हुई हर दास्तां में शुमार-सा।
अहल-ए-दहर मैं क्या कहूँ, तेरे निज़ामों का असर!
हर रोज़ मिलता हूँ मैं खुद से, इक नये किरदार-सा।

-


Fetching Avinash Jain Quotes