Avinash Gupta  
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Joined 11 April 2019


Joined 11 April 2019
7 NOV 2022 AT 1:34

होठों पे मुस्कान
कंधो पर जिम्मेदारियों का भार था
सुकुन इन रातों का
आंखों से झलकने का मार था
फसानों से जिंदगी का
इम्तेहानो का कारोबार से था
शिकायतें इन अरमानों का
खुदही के जाम से था
अब मन करता हैं खोल दूं ये बाहें
चुकी हकीकत से इकरार जो था।।

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18 AUG 2022 AT 21:57

Sunehra sa hawa ka jhoka
Madham sa mousam ka sirakna;
Gungunata ye dilo ka thirakna
Usme se ye khwabo ka zhilmilana;
Zindagi ka dastur hai ye zimmedrana
Kya koi paheli h ya phir sarasarati fasano ka h ek aur thikana!!


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15 MAY 2022 AT 13:01

The way u look at my eyes
I got nervous
The way u touch my face
My heart start beating very fast
When u tell me to speak
I didn't got the words which i want to speak
I don't know whether i'm true to myself r not
But everytime i see u i got nervous
The relief on my face when i touch u
Its just like winning the whole world with ur smile!!

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11 NOV 2021 AT 0:48

सितारों के बीच इस तन्हाई के हुजूम में
देखते परवान चढ़ती ज़िन्दगी की इस जुस्तजू में
किसी ने चाहा तो बंदेया उसकी आरज़ू में
तौफीक करे भगवान उन्हें खुशियों की आबरू में।

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19 OCT 2021 AT 21:45

आरज़ू ए बिद्दत हैं मेरी,
शोख ए अदाएं हैं तुम्हारी,
माशूका ए ख्वाहिश हैं हमारी,
ज़िन्दगी ए ख़्वाब बनने की जुस्तजू हैं तुम्हारी।।

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1 JUL 2021 AT 21:18

ज़िन्दगी क्या पता क्या नई हो गई
जो किया वो सो वहीं हो गई
जो सोचते थे बेफ़िक्री से वो तस्साबुर हो गई
ज़िन्दगी क्या पता अंजान सी बेहती हुई नदी हो गई।।

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10 JUN 2021 AT 20:46

अकेले खोया हुआ गुमनाम सा हूं
ज़िन्दगी के एक मकाम पे अटका सा हूं

बड़ी हसरते थी तुम्हें साज़ाने की मुझे
अब ज़िन्दगी संवारने की हस्रत जो है मुझे
किताबों से तुम्हारी हसरतें जो मिटा चुका हूं।।

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7 APR 2021 AT 18:51

आपसे ये चाहत की आग चाह कर भी कम नहीं कर सकते,
इश्क़ अब भी करते है आपसे इतना,
चाह कर भी इसे बयां नहीं कर सकते।।

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27 MAR 2021 AT 21:35

हर आंखो को ख़ूबसूरती की तलाश हैं,
हर दिलो को सुकून की तलाश हैं,
आपसे मोहोंबत हम यूं ही नहीं कर बैठें,
क्या करे हमारी पसंद ही दुनियां के लिए ख़ास हैं।।

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18 DEC 2020 AT 17:56

नये नये से ये डगर है,
उल्टी सीधी लेकिन मगर हैं
सोचता अपने आरज़ू के मारे
फिर से वो चला अपना मकाम्म हैं

अंजान सा वो सख्स दूर चला हैं
बेफिक्र सोचता जो मंज़ूर-ए- ख़ुदा होना हैं।।

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