मेरे ज़िम्मे चाहे मौत दे पर कोई ग़लत काम ना दे
मेरे नेक फ़न के कोई यूँ ही, झूठे पयाम ना दे
मुझे बस हाथ थामना था, पकड़ना सोचा भी नहीं
मेरी क़ुर्बत पाक साफ़ है, इसे कोई ग़लत नाम ना दे
ताउम्र जद्दोजहद रहेगी कि तेरा नूर बरक़रार रहे
भले हि मेरे उन्स को तू वाज़िब अंजाम ना दे
इस रिश्ते की दोपहर भी, बारिश है, बहार है
इस रिश्ते की जो ताज़गी है, कोई हमाम ना दे
तेरी मौजूदगी ही काफ़ी है मेरे सुर्ख़ आँखों को
जो नशा तुझमें है, कोई और जाम ना दे
तू पास रहे, साथ रहे ये, मेरा मुक़द्दर है हक़ नहीं
पर तू ख़्वाबों में भी ना आए, ख़ुदा कभी ऐसी शाम ना दे
चाहे जीते जी सब जीत लूँ, और मौत पर दुनिया झुके
पर जग जीतना बेकार है, अगर तू फिर से सलाम ना दे...-
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तेरी मौजूदगी में
सोचते थे, सिर्फ हम ही हैं
अब तेरी कमी है
तो आँखों में नमी है
अब तो-
जो भी हलचल दिल में हो
खुद को ही सुनाता हूँ
खुद से ही रूठता हूँ
खुद को ही मनाता हूँ...-
It would be more pleasant
To do the important
Than to do the pleasant...-
पुख़्तगी-ए-तजरबात की पहचाना क्या है?
क़ुर्बत में किसी अहबाब को खंजर लिए पाना...-
दिल पहले तकल्लुफ़ में सही, सीने में था
उस तड़प में, अलग ही मज़ा जीने में था
मुफ़लिसी में बसर करने का हुनर सीखा
जीते-जी पल-पल मरने का हुनर सीखा
पर, बीच तकल्लुफ़ में जब
दिल टूट टूट कर बिखरने लगा
और कहने लगा, अब कह भी दो
फिर दिल ने, अपने दिल में जुर्रत की
जुर्रत कर के एक दिल से इज़हार किया
दिल ने सोचा दिल ने दिल का सिंगार किया
दिल ने दिल का सिंगार किया आबाद किया
फिर अगले ही पल सपना टूटा
सपना टूटा और आँख खुली
आँख खुली और पता चला
पता चला वो सपना सब बर्बाद किया
वो सपना सब बर्बाद किया, वो अपना सब बरबाद किया...-