दिल पहले तकल्लुफ़ में सही, सीने में था
उस तड़प में, अलग ही मज़ा जीने में था
मुफ़लिसी में बसर करने का हुनर सीखा
जीते-जी पल-पल मरने का हुनर सीखा
पर, बीच तकल्लुफ़ में जब
दिल टूट टूट कर बिखरने लगा
और कहने लगा, अब कह भी दो
फिर दिल ने, अपने दिल में जुर्रत की
जुर्रत कर के एक दिल से इज़हार किया
दिल ने सोचा दिल ने दिल का सिंगार किया
दिल ने दिल का सिंगार किया आबाद किया
फिर अगले ही पल सपना टूटा
सपना टूटा और आँख खुली
आँख खुली और पता चला
पता चला वो सपना सब बर्बाद किया
वो सपना सब बर्बाद किया, वो अपना सब बरबाद किया...
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