अविनाश एक्का   (अवि👣)
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Soldier : Writer : Believer
Joined 16 November 2019


Soldier : Writer : Believer
Joined 16 November 2019

कभी जम़ी में धसाती है,
तो कभी फलक पर बैठाती है।
बड़ी ज़ालिम है जिंदगी।।
कभी फकीरी में डुबाती है,
तो कभी रईसी में भींगाती है।

कभी धूप से बचाती है,
तो कभी छांव में जलाती है।
बड़ी खुदगर्ज है जिंदगी।।
कभी भीड़ में रुलाती है,
तो कभी अकेले में हंसाती है।

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"एक शाम"

न रुतबा चाहिए,
न नाम चाहिए।।
न दौलत चाहिए,
न मुकाम चाहिए।।
दो चार दोस्त हैं मेरे,
बस उनके साथ,
फ़ुर्सत की 'एक शाम' चाहिए।।

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एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए।
और सिर पर लकड़ी का गट्ठर।
नंगे पैर जंगल से चली आ रही थी,
वो मां है,उसे घर जा के खाना पकाना है।।

न सिर पर रखा बोझ थका रहा था।
न नंगे पैरों को कांटा चुभा रहा था।
बस तसल्ली थी कुछ रुपये कमाने की,
वो मां है,उसे अपना घर चलाना है।।

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कुछ ज़ख्म भर जाते हैं,
तो कुछ नासूर बन जाते हैं।

कुछ ज़िद खत्म हो जाते हैं,
तो कुछ फ़ितूर बन जाते हैं।।

हर कहानी मुकम्मल हो,
ऐसा जरूरी तो नहीं।।

कुछ रिश्ते नाज़ हो जाते हैं,
तो कुछ कसूर बन जाते हैं।।

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न फिलिस्तीनी मरा है,
न यहूदी का खून हुआ है।।
इंसान मरा है,
इंसानियत का खून हुआ है।।

आरोप प्रतयारोप चला,
राजनीति का मेल हुआ है।।
हैवान उठा है,
हैवानियत का खेल हुआ है।।

बम से उड़ा, मलबे में दबा,
खून से लथपथ बचपन हुआ है।।
मुस्कुराहट मरा है,
मासूमियत का खून हुआ है।।

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याद वो भी करते हैं,
याद हम भी करते हैं।
पर बताते वो भी नहीं,
और बताते हम भी नहीं।।

इश्क वो भी करते हैं,
इश्क हम भी करते हैं।
पर जताते वो भी नहीं,
और जताते हम भी नहीं।।

जिंदगी बढ़ी, वक़्त बदला।
लोग बढ़े और हालात बदला।।

पर आज भी वो परवाह करते हैं,
और आज भी हम परवाह करते हैं।
पर दिखाते वो भी नहीं,
और दिखाते हम भी नहीं।।

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गजब उटपटांग है,
मोहब्बत हमारा।
हम छुपाते नहीं,
वो दिखाते नहीं।

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कई किस्से होते होंगे।
बहुत सी बातें होती होंगी...।।

जहां हाथ पकड़ घूमती थी मेरा,
फिर कभी उन गलियों से गुजर।

कई चर्चे होते होंगे।
बहुत सी अफवाहें होती होंगी...।।

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एक तेरी आदत है,
जो छूट नहीं रही...।।
और एक तू है,
जो जाने कहां छूट गई...।।

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जब खुद को,
राजा समझने लगता हूँ।
तब जिंदगी,
'रंक ' बना देती है।।

जब खुद को,
खास समझने लगता हूँ।
तब जिंदगी,
'अंक ' बना देती है।।

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