Author Shyamal Choudhary  
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Joined 16 May 2019


Joined 16 May 2019
9 FEB 2022 AT 8:32

मैं अब जब भी गिरता हूं, जमी पे गिर ही जाता हूं।
उठता हूं अकेले ही, जिस्म को सहलाता हूं।

खटकती है तेरी बाते, जो कह के तुम उठाते थे।
अकिंचन हूं अकेला मैं, चोट लगने पे पिता कह मैं चिल्लाता हूं।

के जब भी रोता था कभी भी मैं, हिम्मत तुम दिलाते थे।
थे मेरे सखा से तुम, अनाथ बन अब जीवन चलता हूं।

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17 JAN 2022 AT 1:10

ऐ ज़िन्दगी कब तक भगाएगा मुझे।

कभी तू भी तो पाजेब पहन मेरे साथ चल।

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16 JAN 2022 AT 12:50

बेवजह तुझपे गुरुर था हमें ऐ ज़िन्दगी ।
वक़्त आने पे पता चला, तुमसा बेवफ़ा कोई और ना है।

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1 JAN 2022 AT 13:55

अपने जैसे के सफे में मुँह को छुपा के रहते हैं लोग।
और कहते हैं के बेदाग हैं हम।

मजा तो तब है, जब काजल की कोठरी से निकलो।
और कहो के बेदाग हैं हम।

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5 DEC 2021 AT 8:00

आज भी तुम ख्वाहिशों के उसी मोड़ पे हो।
जहाँ अक्सर हम वक़्त गुजारा करते थे।

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25 NOV 2021 AT 23:45

कल तक जो था आँख का तारा।
आज नयन का नीर बना।

समय भी बदला, वक़्त भी गुजरा।
किन्तु आज नयन ये छीर बना।

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6 NOV 2021 AT 15:44

बहुत तनहा, बेबस और अकेला हूँ।

पता है क्यों,
आज भैया दूज है और मैं, आज अकेला हूँ।

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4 NOV 2021 AT 17:41

कभी सरारों से सराबोर थी ज़िन्दगी।
अब तन कोहरे सा लगता है।

कभी बेबाक उलझ पड़ता था मैं।
अब मौन व्रत रख,..... मन कहता है।

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24 OCT 2021 AT 23:49

कदम पीछे हम भी रख सकते हैं।
कलेजा लहू का हम भी रखते हैं।

फर्क बस एक है उनमें और हममें।
वो अंजुमन में रहते है और हम मन में रखते हैं।

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12 OCT 2021 AT 22:30

मन तनहा, अशांत और ख़ौफ़ में है।
ऐसा लगता है, कलेजे को खरोंचा हो किसी ने।

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