वो भी क्या दिन थे,
न दुनियां की परवाह, न कल की फ़िक्र,
न पढ़ाई की चिंता, न फेल होने का डर।
वो भी क्या दिन थे
दोस्तो के साथ दिन भर घूमना,
घंटो बातें करना, बागों में आम खाना
वहीं दोस्तो की महफ़िल जमाना
वो भी क्या दिन थे
स्कूल में कांड कोई हो,
नाम सिर्फ हम दोस्तो का हो।
छोटी छोटी बातों पर लड़ना झगड़ना
और अगले ही पल सब भूल जाना।
वो क्लास के लिए झगड़ना,
वो दोस्तो के साथ मिलकर लड़कियों का मज़ाक बनाना।
वो क्लास का मॉनिटर बनकर सब पर धौस जमाना।
दीदी की पिटाई से बचने के लिए झूठे मूठे बहाने बनाना।
वो दीदी की डांट, कंप्यूटर की क्लास
स्काउट की परेड, क्लास की वो बेंच
26 जनवरी की तैयारी, वो दोस्तो की यारी
बहुत याद आते है बचपन के वो दिन।
कभी कभी सोचते है,
ज़िन्दगी की तलाश में कहां खो गए हम,
आखिर इतनी जल्दी बड़े क्यों हो गए हम।-
मै कोई लेखक या ... read more
आज मैंने “गुनाहों का देवता” उपन्यास पढ़ा। किताब के अंत तक मेरी आंखो में आंसू आ गए जिन्हें मैं चाह के भी ना रोक पाया।
शायद कहीं ना कहीं यह पुस्तक हर उस प्रेमी के दिल को छुएगी जिसने सही मायनो में मोहब्बत की होगी।-
कुछ रातें ऐसी होती है,
जहां हम खुद से मिलते है,
खुद से ही खुद की बातें करते है,
चुपचाप से अपने दिल को सुनते है।
तब न समय की चिंता, न कल की फिक्र होती है
न सोने की जल्दी, न कल की सुबह का इंतजार रहता है
कभी पुरानी गलतियों को सोच पछताते है
तो कभी मजेदार पलो को सोच मुस्कराते है।
जो सच में हो नहीं सकता,
उन ख्वाबों की दुनियां में भी चले जाते है,
वहां आशाओ के पल और सुकून से भरे लम्हों से मुलाकात करते है,
हां कुछ रातें ऐसी भी आती है।-
चलो आज फिर से दिखावा करते है,
तुम मुझ से पूछो, ‘कैसा हूँ मै’
और मैं कहूँ ‘सब ठीक है।’-
सिर्फ नाम लिख देने से कोई लेखक नहीं बन जाता,
दिल तुड़वाना पड़ता है कुछ दिल से लिखने के लिये।-
ज़िन्दगी तो मिल गई,
पर जीना शुरू करोगे कब ?
लोगों के ताने बहुत सुन लिए,
उनको जवाब देना शुरू करोगे कब ?
माता पिता की नकली पहचान पर बहुत जी लिए,
अपनी खुद की पहचान बनाना शुरू करोगे कब ?
दुनियाँ को दिखाने के लिए झूठी हंसी हँसते हो
अपने लिए खुल के हँसना शुरू करोगे कब ?
दूसरों के हिसाब से बहुत जी लिए,
खुद के हिसाब से जीना शुरू करोगे कब ?-