बातें सच्ची हो तो बातें चलती हैं
निपट अकेले में तो राहें भी हंसती हैं
निकलकर देख लूं सच्चाई बाजार में,
बिकती है यहां सब झूठ के व्यापार में
अखरती है मुझे दुनिया दिखावे की ये
सच्चाई लिपट जाती है झूंठे पहनावे में-
अलग से हैं मशरूफियत के अंदाज हमारे भी,
किसी की आंखो के तारे है,
किसी के सिर पे बोझिल भी।
फर्क पड़ता नहीं अब, किसी पर बोझिल होने का।
फर्क इस बात का पड़ता है कि, जिसकी आंखों के तारे हैं चमकते रहें।
उनकी दुआओं से ही मद्धम सही, पर चमकते रहें।-
बिन तेरे ये मौसम सभी बेकार से है
ये जिंदगी रूठी ख़ुद हर बार से है
तुम बिन मै ख़ुद कभी ख़ुदग़र्ज़ भी रहा हूं
पथराई आंखों से खुद को कोसता रहा हूं
मुकाम की तलाश शायद बरसों से कर रहा हूं
जो तुम्हारी तलाश में वक़्त जाया कर रहा हूं
बेहिसाब मोहब्बत की तलाश जारी रखूंगा
पर हर बार चेहरा तुम्हारा ही सामने रखूंगा-
निकलने की कशिश में इस कदर फंस गए हम
ढूंढ़ने पर भी रास्ता निकलता नहीं हरदम
ये मेरा नज़रिया है या भटक गए हैं हम
अब कोई हमें आकर बताए भी यार
क्यूं अभी भी उसी पर अटक गए हैं हम-
मेरे हर पन्ने में मेरा ही इजहार निकला,
तेरे ज़र्रे ज़र्रे से इक नया किरदार निकला।
मैं बावरों की तरह हवाओं को कोसता रहा,
मगर तू ही मेरे किरदार को नोचता रहा।-
इश्क़ के खातिर, इश्क़ को, इश्क़ में ढूंढ़ता रहा
इश्क़ में ही, इश्क़ से, इश्क़ को फिर लूटता रहा-
तेरे वजूद को सोंचकर ही सोंचता रहा
फिर खुद को मुख्तबिल कोसता रहा
तेरा मिलना भी मेरे जानिब कुछ ऐसा रहा
तुझसे मिलकर मैं ख़ुद को ही भूलता रहा
एक वक्त के बाद ख़ुद को याद आया हूं
ये मेरा सोचना भी यार कितना जायज़ रहा-
बस खयाल सा रहता था
सोंच सोंच कर ही बदहाल सा रहता था
एक अर्सा हो गया ये करते करते
कभी तुम याद करते कभी हम याद करते
यार अब फैसला भी कर लो अपनी यादों का
क्यूं मुझे हर घड़ी बस परेशान करते हो
-
यहां मांझी को किनारा बहुत हैं
बाहर निकलकर ही फिर दुत्कारा बहुत है
कलम चलती रही किसी रास्ते अनजान पर
बाद मंजिल के फिर पुचकारा बहुत है-