अतुल पाठक   (अतुल पाठक)
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Joined 23 March 2018


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8 OCT 2022 AT 20:16

हया के नाम का जेवर तो पहना करो
हम सादगी पे मरते हैं सादा रहा करो

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27 SEP 2022 AT 22:10

रुख़्सार उसके अरक़ से हसीं लगते हैं ऐसे
शबनम के कतरों से गुलाब नाज़नीं लगते हैं जैसे

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15 SEP 2022 AT 22:09

व्यवहार और विचार ही हैं
जिनकी वजह से.....
या तो इंसान दिल में उतर जाता है
या फिर दिल से उतर जाता है!

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18 AUG 2022 AT 20:42

ख़ामोशी की तह में छुपा हूँ मगर
गुफ़्तगू से भी ज्यादा सुकूँ मिल रहा

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6 JUN 2022 AT 13:57

बांसुरी दिल में बजे जब और बजे शहनाइयां
दो दिल की मुलाकात से मिलते चैन सुकूँ और खुशियां

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21 MAR 2022 AT 21:05

विश्व कविता दिवस विशेष
शीर्षक-कविता
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सृजन का अर्पण है कविता,
मन का दर्पण है कविता।

अनकहा चरण है कविता,
शून्य हृदय में रोपण है कविता।

सीप में मोती सा चयन है कविता,
अर्जन नहीं सृजन और गहन है कविता।

श्रृंगार प्रेम हास्य और वीर रस का मिश्रण है कविता,
शब्दों से चमकती नवकिरण है कविता।

कभी कल्पना तो कभी प्राण है कविता,
नित नया नया निर्माण है कविता।

भावनाओं का चित्रण है कविता,
सत्य का कर्पण है कविता।

शब्द और अर्थ का मेल है कविता,
कवि की काव्यरूपी बेल है कविता।

दिल की हर बात बयाँ करे जो,
कागज़ कलम को जिस पर गुमाँ हो वो मौन की जुबाँ है कविता।

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14 MAR 2022 AT 0:23

शीर्षक-हाथों के स्पर्शों से
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हाथों के स्पर्शों से,
मेरा तन मन आबाद कर दो तुम।

अरमान छटपटा रहे बहुत हैं,
मुझे आग़ोश में अपने समा लो तुम।

एहसासों के परिंदे जाग रहे बहुत हैं,
प्रेमसागर में सरिता बन उतर जाओ तुम।

पग रखकर प्रेम की पृथ्वी पर,
अमरबेल सी लिपट जाओ तुम।

मेरे दिल की वादियों में छा जाओ तुम,
प्यार के रंगो गुलाल बन जाओ तुम।

साँसों में समाकर घुल जाओ तुम,
रात की रानी सी महक जाओ तुम।

अदाओं का जलवा क़यामत ढाओ तुम,
हुस्न की तपिश से मेरी तिश्नगी मिटाओ तुम।

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28 FEB 2022 AT 22:11

साथ चलने निभाने का ख़ुत्बा न देना
वक्त पर बदलते इंसान को मैंने करीब से देखा है

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28 FEB 2022 AT 15:59

मन उदास मेरा बहुत है
कोई न समझे इस नादाँ मन को

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7 FEB 2022 AT 18:58

दिलों का शोर ख़ामोशियों से सुनो
ख़ामोश जुबाँ मोहब्बत बयाँ करती है

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