की शायद तुम मिलों !
हालांकि अब तू मेरी हो नहीं सकती लेकिन, बैठा हूं आस लिए की शायद तुम मिलों !
घूम आता हूं मैं हर सुबह , उन्हीं ताल किनारों पे की शायद तुम मिलों !
चूम आता हूं उसी कदम की डाल को फिर मै की शायद तुम मिलों !
हर रोज गुजरता हूं मै अब भी, तेरी घर की उन्हीं राहों से की शायद तुम मिलों !
मैं अब भी जाता हू हर शाम, उन्हीं बगीचों में की शायद तुम मिलों !
मैं आज भी संजोता हूं अपने ख्वाब संग तेरे , की शायद तुम मिलों !
मैं बांध आता हू हर बार,मन्नतों के धागों को वहीं फिर से की शायद मुझे तुम मिलों !
हवा की राहों में बंद आंखें किए,
अपनी बाहों को फैलाकर सोचता हूं तुम्हें , की शायद एहसासो में मुझे तुम मिलों !
गांव की हर गली चैराहों में आवारा हुए, घूमता हूं आज भी मैं, की शायद तुम मिलों !
चांदनी भरी रातों में, छन-छन, खन - खन की सी तरानों में, सावन की बरसातों में , गुनगुनाते अपनी तरानों में, अपनी ख्वाबो ख्यालों में सोचता हूं मैं तुम्हें की शायद तुम मिलों !
की शायद तुम मिलों !
की शायद तुम मिलों !
# love life # A.a #
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