तेरा ज़िक्र ज़माने को नहीं, कुछ पन्नों को सुना रखी हूं..
इन चश्मों के पीछे, तेरी तस्वीर छुपा रखी हूं...।❤️-
कमरा मैंने पूरा सजाया, पर एक कोना अब भी वो खाली है।
सफेद रिश्ता जो हमने बनाया, धुंधली भी अब वो काली है।
हिचकियां तो आती होगी उनको, इतना जो याद किया,
तस्वीर हमने रंगीन खींचवाया,दिखती काफी अब वो सादी है..।।-
पीछे उनके कदमों का एक साया बनना है,
रस्तो का कांटा नहीं ..ठंडी छाया बनना है,
बाबा दिल की बातें कह दें, वैसी चिड़िया बनना है
माथे का शिकन नहीं, आंखों की निंदिया बनना है ।।
ना बस नाज़ुक सी मुझे एक गुड़िया बनना है,
मुझको, उनकी गाड़ी का एक पहिया बनना है,
कोई आरज़ू नहीं ...खुश हूं रब की मर्ज़ी में...
उनका राजा बेटा नहीं, प्यारी बिटिया बनना है ।।-
मैं रोज सिरहाने रख सोती हूं...
फिर नींद को तकियो पर रख
एक ख्वाब नया पिरोती हूं...।-
तुम हो...❤️
मेरे हर लिखावट के स्याह में तुम हो,
हर पहले मिशरे के इरशाद में तुम हो,
पसंदीदा मेरे किताब के पन्नो में...
और उनमें रखी सुखी गुलाब में तुम हो....।।
सुबह में दिखते मेरे अख़बार में तुम हो,
शाम के मीठे मेरे ख्याल में तुम हो,
दफ्तर से भी ज़्यादा मशगूल रखते हो मुझे..
क्या जुम्मेरात क्या जुम्मा, मेरे हर इतवार में तुम हो..।।
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मैं...यानी गुरु 🙏
एक वक़्त था पहले जिसमें अदब था
उनका मैं सबकुछ और उनका ही रब था
जो कह दूं मै दिन तो वो दिन मान बैठे
जो मेरे लिए अंधेरा वो उनका भी शब था
अब तो मुझको तुम क्या मानते हो
एक वक़्त के बाद ना पहचानते हो
पर याद नहीं तुझको ....
नाम से तेरे मिलाता वो मै हूं
वाकिफ तेरी पहचान से कराता वो मै हूं..
कहने को मुझे तुम तो गुरु कहते हो
पर डांटू ज़रा तो मुझे ही डंस्ते हो
आंख दिखाते दक्षिणा भी देते
इस भेंट को लेकर मुस्काता वो मै हूं
उस वक़्त जो मै था, वो अब भी वो मै हूं
शिक्षक ..गुरु... और उस्ताद मै हूं....-
मैं ....यानी गुरु❤️
ज़िन्दगी में उजाला जो लाता वो मै हूं
तेरी छोटी सी दुनिया सजाता वो मै हूं...
कभी भटक गए हो राह.. तो यूं याद रखना
राहगीर को रस्ता जो दिखाता वो मै हूं..
मुरझाना ना तुम ये है मेरी ख्वाहिश
बागिया तेरी जो महकाता वो मै हूं...
उलझन में जो मुझको सब कोई पुकारे
शिक्षक ...गुरु...और उस्ताद मैं हूं....-
ठहरी हुई जज़्बातों में रवानी आई
फिर इस कलम में वही स्याही आई..
पन्नों पे फिर चला वो जादू ,
ख़ुशबू उनसे वही पुरानी आई..
आज खुद को मैंने खूबसूरत पाया,
उनकी आंखों में तस्वीर मेरी प्यारी आई..
मुद्दतों बाद आज मिला हमें वक़्त
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई..-
सुबह याद आए, शाम याद आए,
तेरी यादों के आड़े न कोई काम काज आए..
मुहासिब नहीं कि हिसाब कर सकूं,
तुम मुझको याद ...बेहिसाब आए ।
दस्तखत ज़रूरी थे उन कागज़ो पे,
पन्नों पर तेरा, हम नाम लिख आए...
संदूक में पड़ी थी मेरी एक कहानी,
थैली में तेरे , अब वो कलाम रख आए...।
ज़िक्र होता है जब भी यूं तेरा,
थोड़ा मुस्काए या शर्माएं
यूं ज़ोर तो किसी का न था मुझ पे,
न जाने उनकी यादों ने मुझसे क्या क्या कराएं...।।
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वो भी क्या ज़माना था, एक जंगल हमारा ठिकाना था।।
नया याराना था पर लगा नाता कोई पुराना था...
बंध गए थे कुछ रिश्ते काफी मजबूती से...
धागे ही कच्चे थे.. या शायद उन्हें यहीं तक निभाना था...।-