Atique Anwar   (© Atique Anwar(Aqs))
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Joined 21 March 2018


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Joined 21 March 2018
24 MAR AT 23:41

फिक्र ए जिस्म में मुब्तला है सभी,
न बची है रूह की फिक्र कही,
और बैठें है ज़िंदगी के मयखाने में कुछ यूं,
के न बचा बनाने वाले का जिक्र कहीं।

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24 SEP 2024 AT 22:41

दो पल का है जीवन, फिर क्यों ठहर जाएँ,
चल सपनों की राहों में हम दूर निकल जाएँ।

अक़्स, है हर लम्हे में बीते कल की छाँव,
चल छोड़ चलें वह परछाईं, जिनमे बसे है पुराने घाव।
हिम्मत का दीप जलाकर, डर को धुआँ बनाएँ,
दो पल का है जीवन, फिर क्यों ठहर जाएँ।

दर्द की लहरों से भी, साहिल नया रचाएँ,
टूटते ख़्वाबों से हम, उम्मीदें फिर जगाएँ।
आँधी भी हो सामने, फिर भी ना झुकें हम,
वक्त की हर चुनौती को, अपनी ताकत बनाएं।

अक़्स न हो पीछे का, बस आगे की राह दिखाएँ,
दो पल का है जीवन, फिर क्यों ठहर जाएँ।

हर कदम पर जो हो अंधेरा, उम्मीदों की मशाल जलाएं,
कर्म ही हो साथी, और बस खुद पर भरोसा दिखाएं।
जो बीत गया वो भूत है, आ इक नया वर्तमान बनाएँ,
हर पल को जीते हुए, अपनी दुनिया सजाएँ।

जो बाधाएँ हों लाख,फिर भी हम कदम न हटाएँ,
दो पल का है जीवन, फिर क्यों ठहर जाएँ।

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12 SEP 2024 AT 20:35

नाराज़गी बेवजह ही थी हवा से,
के उथल पुथल कर गई वो घर मेरा,
जबकि खिड़की की चटकनी हटाई किसी और ने।

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10 SEP 2024 AT 23:06

साथ बैठते तो है वो आज भी
पर अब पहले सी बात नही होती,
रूबरू होते तो है वो आज भी,
पर अब पहले सी मुलाकात नहीं होती,
कुछ तो खामियां ज़रूर होंगी तुझमें ए 'Aqs'
यूं ही कोई नाराज नहीं होती।

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10 SEP 2024 AT 21:00

रुके फिर चले और दौड़े दौर-ए-हयात में,
और फिर थक कर दफ्न हुए खामोश वीराने में,
टूटी चुप्पी जो वीराने की तो इल्म हुआ,
अब तक जी रहे थे ख्वाबों के आशियाने में,
और बस यूं ही गुजरा सफर खयाली ज़मानें में।

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29 MAY 2024 AT 22:21

हसरतों की उलझन में ,
खुद का सुकून खो बैठे,
न मुकम्मल हुई हसरतें ए "अक्स",
और सुकून से भी हाथ धो बैठे।

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9 MAY 2024 AT 8:31

मै हर रोज़ एक ख्वाब लिखता हूं,
इंतज़ार में उनके हर खत का जवाब लिखता हूं,
मिलेंगे हम जब सुर्ख़ होगा चांद,
होंगी समंदर उफान पर तोड़ती हुई हर बांद,
खिल उठेगी सेहराहें भी,
जब छोड़ देगी हर शह अपनी मांद,
बस हर सहर यही ख्वाब लिखता हूं,
फिर दूसरे पहर उनके खत का जवाब लिखता हूं।

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21 DEC 2023 AT 23:15

क्यूं हर महफिल में लोग तुम्हारा पूछते है,
नकार देता हूं रिश्ता सिरे से हर दफा,
फिर भी जाने क्यों वही लोग दोबारा पूछते है।

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20 DEC 2023 AT 19:13

के अब चैन नहीं पड़ता इन चार दिवारी में,
सुकून को बहोत खोजा बाहर ज़माने में,
पर था वो भी कैद इन चार दिवारी में।

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12 NOV 2023 AT 11:11

दुआ करो सलामती की
इन अंधेरों की,
की अब रोशन जहां होने वाला है।

हैप्पी दीपावली

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